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। (११०) भाषार्थ-जो रूप रस गन्ध स्पर्श परिणाम स्वरूपकरि इन्द्रियनिके ग्रहण करने योग्य हैं ते सर्व पुद्गल द्रव्य हैं. ते संख्याकरि जीवराशि अनन्तगुणे द्रव्य हैं ॥ २०७॥ ___ अब पुगल द्रव्यकै जीवका उपकारीपणाकू कहै हैं,जीवस्स बहुपयारं उवयारं कुणदि पुग्गलं दुव्वं । देहं च इंदियाणि य वाणी उस्सासणिस्सासं ।२०८॥ ___ भाषार्थ-पुद्गल द्रव्य है सो जीवके बहुत प्रकार उपकार करै है. देह कर है, इन्द्रिय करै है, बहुरि बचन करै है, उस्वास निस्वास करै है. भावार्थ-संसारी जीवके देहादिक पुद्गल द्रव्यकरि रचित हैं. इनकरि जीवका जीवतव्य है यह उपकार है ॥ २० ॥ अण्णं पि एवमाई उवयारं कुणदि जाव संसारं । मोह अणाणमयं पि य परिणामं कुणइ जीवस्स ॥
भाषार्थ-पुद्गल द्रव्य है सो जीवके पूर्वोक्तकू आदिकरि अन्य भी उपकार करै है. जेते या जीवकै संसार है तैते घणे ही परिणाम करै है. मोहपरिणाम, पर द्रव्यनित ममत्त्व परिणाम, तथा अज्ञानमयी परिणाम, ऐसे सुख दुःख जीवित मरण आदि अनेक प्रकार करै है. यहां उपकार शब्दका अर्थ किछू परिणाम विशेष करै सो सर्व ही लेणा ।। २०९ ॥
आगे जीव भी जीरकू उपकार करे है, ऐसा कहै हैं ।