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________________ (१०४) भाषार्थ-जे जीव जिनवचनविष प्रवीण हैं बहुरि जीवकै अर देहकै भेद जाणे हैं. बहुरि जीते हैं पाठ पद जिनने ते अंतरात्मा हैं. ते उत्कृष्ट मध्यम जघन्य भेदकरि तीन प्रकार हैं। भावार्थ-जो जीव जिनवानीका भले प्रकार अभ्यासकरि जीव अर देहका स्वरूप भिन्न भिन्न जाने ते अंतरात्मा हैं. तिनिकै जाति लाभ कुल रूप तप बल विद्या ऐश्वर्य ये पाठ मदके कारण हैं तिनिविष अहंकार ममकार नाहीं उ. पजै है जाते ये परद्रव्यके सयोगजनित हैं तातै इनिविषै गर्व नाहीं करै हैं ते तीन प्रकार हैं ॥ १९४ ॥ __ अब इनि तीन प्रकारविधै उत्कृष्टकू कहै हैंपंचमहव्वयजुत्ता धम्मे सुक्के वि संठिया णिचं । णिजियसयलपमाया उक्किट्ठा अंतरा होंति ॥१९५॥ भाषार्थ-जे जीव पांच महाव्रतकरि संयुक्त होय बहुरि धर्म्यध्यान शुक्लध्यानविषै नित्य ही तिष्ठे होंय बहुरि जीते हैं सेकल निद्रा आदि प्रमाद जिनिने ते उत्कृष्ट अन्तरात्मा हैं। अब मध्यम अन्तरात्माकू कहै हैंसावयगुणेहिं जुत्ता पमत्तविरदा य मज्झिमा होति। जिणवयणे अणुरत्ता उवसमसीला महासत्ता ॥ ___ भाषार्थ-जे जीव श्रावकके व्रतनिकरि संयुक्त होंय बहुरि प्रमत्त गुणस्थानवी जे मुनि होंय ते मध्यम अन्तरा.
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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