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________________ ( ९१ ) - अब देवनारकीनिकी आयु कहै हैं,देवाण णारयाणं सायरसंखा हवंति तेतीसा।। उक्किटुं च जहण्णं वासाणं दस सहस्साणि ॥१६५॥ भाषा)-देवनिकी तथा नारकी जीवनिकी उत्कृष्ट आयु तेतीस सागरकी है. बहुरि जघन्य श्रायु दस हजार वर्षकी है. भावार्थ-यह सामान्य देवनिकी अपेक्षा कही है विशेष त्रैलोक्यसार आदि ग्रंथनितें जाननी ॥ १६५ ।। प्रागें एकेन्द्रिय प्रादि जीवनिकी शरीरकी अवगाइना उत्कृष्ट जघन्य दश गाथानिमें कहै हैं,अंगुलअसंखभागो एयक्खचउक्कदेहपरिमाणं । जोयणसहस्समहियं पउमं उक्कस्सयं जाण ॥१६॥ भाषार्थ-एकेन्द्रिय चतुष्क कहिये पृथ्वी अप तेज वायु कायके जीवनिकी अवगाहना जघन्य तथा उत्कृष्ट घन अंगुलके असंख्यातवें भाग है. इहां सूक्ष्म तथा गदर पर्याप्तक अपर्याप्तकका शरीर छोटा बड़ा है. तोऊ घनांगुलके अंसख्यातवें भाग ही सामान्यकरि कह्या. विशेष गोम्मटसारतें जानना. बहुरि अंगुल उत्सेधअंगुल पाठ यव प्रमाण लेणी, प्रमाणांगुल न लेणी, बहुरि प्रत्येक वनस्पती कायविर्षे उ. स्कृष्ट अवगाहनायुक्त कमल है ताकी अवगाहना किछु अधिक हजार योजन है ॥ १६६ ॥ बायसजायण संखो कोसतियं गुब्भिया समुद्दिट्ठा ।
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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