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________________ ( ८९ ) ताल ले अर नीचे आनत स्वर्गका पटलपर्यंत संख्यातगुणे हैं. तापीछे नीचे सौधर्मपर्यंत असंख्यातगुणे पटलपटलपति हैं। सत्तमणारयहितो असंखगुणिदा हवंति णेरइया । जावय पढमं णरयं वहुदुक्खा होंति हेट्ठा॥१५९।। __ भाषार्थ-सातवां नरक” ले ऊपरि पहला नरकताई जीव असंख्यात २ गुण हैं. बहुरि प्रथम नरक ले नीचे २ बहुत दुःख हैं। कप्पसुरा भावणया विंतरदेवा तहेव जोइसिया। बे होंत असंखगुणा संखगुणा होति जोइसिया ॥ - भाषार्थ-कल्पवासी देवान भवनवासी देव व्यंतरदेव ए दोय राशिौ असंख्याल गुणी हैं। बहुरि ज्योतिषी देव ब्यंतरनित संख्यातगुणे हैं ॥ १६० ॥ प्रागै एकेंद्रियादिक जीवनिकी आयु कहै हैंपत्तेयाणं आऊ वाससहस्साणि दह हवे परमं । अंतोमुहत्तमाऊ साहारणसव्वसुहमाणं ॥ १६१ ॥ भाषार्थ- प्रत्येक वनस्पतिकी उत्कृष्ट आयु दश हजार वर्षकी है. बहुरि साधारणनित्य, इतरनिगोद सूक्ष्म वादर तथा सर्व ही सूक्ष्म पृथ्वी अप तेज वातकायिक जीवनिकी उस्कृष्ट आयु अन्तर्मुहूर्तकी है ॥ १६१ ॥ आगें वादर जीवनिकी आयु कहै हैं,बावीस सत्चसहसा पुढवीतोयाण आउसं होदि । अग्गीणं तिणि दिणा तिण्णि सहस्साणि वाऊणं १६२
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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