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रूवसिरिगव्विदाणं जुव्वणालावण्णकंतिकलिदाणं ।
सीलगुणवज्जिदाणं णिरत्थयं माणुस जम्म ॥ ४७८ ॥ व्यक्ति भले ही रूप, शोभा, यौवन, लावण्य और कान्ति से मण्डित हो लेकिन अगर गुण से रहित है तो उसका मनुष्य जन्म लेना निरर्थक है ।
वायरणछंदवइसेसियववहारणायसत्थेसु । वेदेऊण सुदेसु य तेसु सुयं उत्तमं सीलं ॥ ४७६ ॥ व्याकरण, छन्द, वैशेषिक, व्यवहार शास्त्र, न्यायशास्त्र और यहाँ तक कि जिनागम ज्ञान से भी बड़ा है ।
सीलगुणमंडिदाणं देवा भवियाण वल्लहा होंति । सुदपारयपउरा णं दुस्सीला अप्पिला लोए ॥ ४८० ॥
गुण से शोभित भव्य जीव देवताओं को भी प्रिय होते हैं। इसके विपरीत शास्त्रों में पारंगत लेकिन शील से रहित व्यक्ति लोक में भी न्यून बने रहते हैं । अर्थात् वे मनुष्यों के भी प्रिय नहीं होते ।
सव्वेविय परिहीणा रूवविरूवा वि पडिदसुवया वि । सीलं जेसु सुसीलं सुजीविदं माणुसं तेसिं ॥४८१॥
जो व्यक्ति सब प्राणियों में हीन हैं, सौन्दर्य में भी गए गुज़रे हैं और जिनकी उम्र भी अतिशय ढलान पर है लेकिन अगर उनका शील उत्तम है तो वे जीवन्त हैं। उनका मनुष्य जीवन सार्थक है ।
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