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________________ [ ६७ ] पृथ्वीका राजा हूं । मेरे विना ये सब लोग दीन ही समझने चाहिये। इस प्रकारकं निंद्य विचारोंसे प्रमादी हुए अज्ञानी मनुष्य जन्ममरणरूप संसारको बढानेवाले अकार्य ही करते हैं ।। ११८ ॥ ११९ ।। १२० ।। लभन्ते सुखशान्तिं किं ग्रहग्रस्ता न वेति भोः ! प्रश्न : - हे गुरो ! पागलोंके समान ग्रहग्रस्त मनुष्य क्या - सुख शांति को प्राप्त कर सकते हैं या नहीं ? कपेश्च तुल्यं हृदयं जनानां, दंशस्य तुल्योऽस्ति कुटुम्बवर्गः । मोहोऽस्ति पापी मदिरासमानो, मायास्ति दुष्टा बकवत्सदैव ॥ १२१ ॥ पिशाचतुल्यानि भुवीन्द्रियाणि, वन्हेः समानः खलु नोकषायः । सदैव चिन्ता क्षयरोगतुल्या, क्रोधोऽपि नीचोऽस्ति रिपोः समानः ॥१२२ आशापि जन्तोः खलु लोकतुल्या, मानोऽस्ति लोके कलहस्य कोशः ।
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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