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________________ [ ६१] बुध्दि प्राप्त होगई है वही मनुष्य मुक्त हो जाता है और सुख शांतिको भोगनेवाला बन जाता है ॥१०८॥१०९॥ केषां सुनिर्मला कीर्तिः कीर्तनीया सदा गुरो! __ प्रश्न:-हे गुरो ! किन लोगोंकी निर्मल कीर्ति सदा वर्णन करते रहना चाहिए? यस्यास्ति चित्ते गुरुदेवभक्तिः, सुपात्रदाने वरभावबुद्धिः। श्रद्धा प्रयत्नः स्वपरोपकारे, पुराणशास्त्रे जिनधर्ममार्गे ॥११०॥ स्वाचारमार्गे विमला प्रवृत्ति-, रास्तिक्यबुद्धिः परलोककायें। वात्सल्यभावः सुजने सधमें, तस्यैव कीर्तिर्भुवि कीर्तनीया ॥१११॥ उत्तरः--जिस पुरुषके हृदयमें देवभक्ति और गुरुभाक्त भरी हुई है, श्रेष्ठ पात्रोंको दान देनेके लिये उत्तम परिणाम और उत्तम बुद्धि भरी हुई है, जिसके हृदयमें आत्मकल्याण करने और अन्य जीवोंका कल्याण करनेकी श्रद्धा भरी हुई है तथा जो आत्मकल्याण और परकल्याण करनेक लिये सदा प्रयत्न करता रहता है, जो पुराण
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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