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इस प्रकार सोलह वर्ष व्यतीत हुए। अब मातापितावोंने रामचंद्रको विवाह करने का विचार प्रकट किया। नैसर्गिक गुणसे प्रेरित होकर रामचंद्रने विवाह के लिये निषेध किया एवं प्रार्थना की कि पिताजी ! इस लौकिक विवाहसे मुझे संतोष नहीं होगा । मैं अलौकिक विवाह अर्थात् मुक्तिलक्ष्मी के साथ विवाह करलेना चाहता हूं | मातापितावोंने आग्रह किया कि पुत्र ! तुम्हे लौकिक विवाह भी करके हम लोगोंकी आंखोंको तृप्त करना चाहिये । मातापितात्रों की आज्ञोल्लंघन भय से इच्छा न होते हुए भी रामचंद्रने विवाहकी स्वीकृति दी । मातापितावोंने विवाह किया। रामचंद्रको अनुभक होता था कि मैं विवाह कर बडे बंधन में पडगया हूं |
विशेष विषय यह है कि बाल्यकालके संस्कारोंसे सुदृढ होनेसे कारण यौवनावस्था में भी रामचंद्रको कोई व्यसन नहीं था। व्यसन था तो केवल धर्मचर्चा, सत्संगति व शास्त्र स्वाध्यायका था । बाकी व्यसन तो उनसे घबराकर दूर भागते थे । इस प्रकार पच्चीस वर्ष पर्यंत रामचंद्रने किसी तरह घर में वास किया परंतु बीच २ में मनमें यह भावना जागृत होती थी कि भगवन् ! मैं इस गृहबंधन से कब छू, जिनदीक्षा लेनेका भाग्य कब मिलेगा ? वह दिन कब मिलेगा जब कि सर्वसंगपरित्याग कर मैं रूपर कल्याण कर सकूँ ।
रामचंद्र वसुर भी धनिक थे । उनके पास बहुत संपत्ति थी । परंतु उनको कोई संतान नहीं था। वे रामचंद्रसे कई दफे कहते थे कि यह संपत्ति घर वगैरे तुम ही लेलो । मेरे यहांक