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________________ [ ५१ ] करनेमें लगी हुई है, तथा जो अपने आत्मासे उत्पन्न हुए आनन्दके स्थान में बैठते हैं, पवित्र शुद्ध आत्मामें शयन करते हैं, अपने शुद्ध आत्मप्रदेशमं सदा चर्या करते हैं, अपने आत्मासे उत्पन्न हुए आनंदरसमें ही सदा तृप्त रहते हैं, और पंचपरमेष्टीरूप गुणी पुरुषोंके ही साथ जो सदा बातचीत करते हैं अर्थात् जो उन्हीं की पूजा, स्तुति करते रहते हैं ऐसे ही लोगोंका जन्म इस संसार में श्रेष्ठ और - सफल माना जाता है ।। ९१ ।। ९२ ।। त्रिलोके शूरवीरः कः कथयाद्य गुरो मम ? प्रश्नः - हे गुरो ! तीनों लोकों में शूरवीर कौन है आज मेरे लिए कहिए ! भवे सुभीमे क्षणदृष्टनष्टे, क्षुधातृषारोगवियोगदुःखे । भोगे च देहे वरजीवने च, पुत्रप्रपौत्र वरमित्रवर्गे ॥ ९३ ॥ षट्खण्डराज्ये सुकललवर्गे, स्पर्शे रसे रागमनोजवर्गे । कौ यो विरक्तः स्वरसे सुरक्तः स एव शूरः सकलेऽपि विश्वे ॥९४॥
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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