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________________ [ ४८ ] प्रश्न: - हे स्वामिन् ! इस संसार में अपने आत्माका घात करनेवाला कौन है और दूसरोंका घात करनेवाला कौन है ? अतीवमूल्यं नरजन्म लब्ध्वा - व्यंगैरुपांगैः परिपूर्णदेहम् | श्रेष्ठार्यखण्डं कुलजातिशुद्धिं, रसायनं वा जिनधर्ममेव ॥८७॥ निजात्मशुद्धिं स्वरसस्य पानं, स्वस्थानचिन्तां स्वगतेर्विचारम् । करोति यो नात्महितं स एव, स्वघातको वा परघातकोऽपि ॥८८॥ उत्तरः- यह मनुष्यजन्म अत्यंत मूल्यवान है जो मनुष्य ऐसे बहुमूल्य मनुष्य जन्मको पाकर तथा समस्त अंग उपांगोंसे बने हुए पूर्ण शरीर को पाकर, श्रेष्ठ आर्यखंडमें जन्म लेकर, शुद्ध कुल और शुद्ध जातिमें जन्म लेकर और रसायन के समान समस्त पुरुषार्थोको सिद्ध करनेवाले जिनधर्मको पाकर भी जो अपने आत्माको शुद्ध नहीं करते हैं, अपने आत्मजन्य आनन्दामृत रसका पान नहीं करते हैं, अपने मोक्षरूप स्थानकी चिंता नहीं करते हैं, अगले जन्म में होनेवाली गतिका विचार नहीं करते हैं और अपने आत्माका हित नहीं करते हैं उन्हीं मनुष्योंकी
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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