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आद्या वक्रव्य। सम्यग्दर्शनदीपप्रकाशका मेयवीयसंभूताः।
भरिचरित्रपताका-स्ते साधुगणास्तु मां पान्तु ॥
जो सम्यग्दर्शरूपी दीपकसे भव्य जीवोंके मनके अंधकारको दूर कर उनके मनमें प्रकाश करनेवाले हैं जीवादिक समस्त पदाथोके ज्ञानसे सुशोभित हैं और अतिशय चारित्रकी पताका जिन्होंने फहरा रक्खी है ऐसे साधुगण मेरी रक्षा करें। ___गृहस्थोंके मुख्य कर्तव्य इज्या व दत्ति है। दोनो कार्यों के लिये गुरु प्रधान आधार हैं । जिस पंचम कालमें साक्षात् तीर्थकर व इतर केवलियोंका एवं ऋद्धिधारी तपस्वियोंका अभाव है, एवं दिव्यज्ञानि मुनियोंके अभाव के साथ शास्त्रोंके अर्थको अनर्थ करनेवाले भोले लोगोंको भडकाने वालोंकी भी अधिकता है, इस विकट परिस्थिति में पूज्यपाद जगद्वंद्य शांतिसागर महाराज सदृश महापुरुषोंका उदय होना सचमुच में भाग्यसूचक है। महर्षि के प्रसादसे आज भी आसेतु हिमाचल [दक्षिणसे लेकर उत्तर तक] धर्मप्रवाहका संचार हो रहा है। आजके युगमें आचार्य महाराज अलौकिक ,महापुरुष है। जगद्वंद्य है। संसारके दुःखोंसे भयभीत प्राणियोंको तारने के लिये अकारमबंधु है। आचार्य महाराजके दिव्य विहार से ही आज धर्मकी प्राचीन संस्कृति यत्रतत्रा दृष्टिगोचर हो रही है। आपके हृदयकी गंभीरता, अचल धीरता व शांतिप्रियताको देखते हुए सचमुचमें आपके नामका सार्थक्य