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________________ [२२] अतएव कहना चाहिये कि यदि किसी जीवका प्राणहरण किया जाता है तो समझना चाहिये कि उसका समस्त धनहरण करलिया जाता है अथवा समझना चाहिये कि जो दुसरोंका प्राणहरण करता है वह स्वयं सब तरहके घोरातिघोर महापाप उत्पन्न करता है। यही समझकर मोक्षकी इच्छा करनेवाले भव्य जीवोंको इस संसारमें अपने प्रमादजन्ययोगों से किसी भी जीवके प्राणोंकी हिंसा नहीं करनी चाहिये । चाहे अपने प्राणोंका नाश हो जाय तो भी किसी भी जीवको किसी भी जीवके प्राणों. की हिंसा नहीं करनी चाहिये ॥ ३९॥४०॥४१॥ अहिंसा कीदृशी देव! फलं तस्याः किमद्धृतम् । प्रश्नः—हे देव ! यह अहिंसा कैसी है और इसका क्या विचित्र फल है ? अज्ञानही वरभारतीव, मातेव या पालनपोषणेपि । वा सौख्यदा कामगवीव लोके, ज्ञात्वेत्यहिंसैव च मोक्षदात्री ॥४॥ प्रमादयोगान्न कदापि हिंसां, कुर्वन्ति केषामपि ये सुभव्याः ।
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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