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________________ [१९] संसारभोगाद्धि विरक्तबुद्धिः, सर्वेषु जीवेषु दयार्द्रभावः ||३५|| चिन्हेन बुद्ध्वा खलु सर्ववस्तु, परे विरक्तिश्च निजे रतिश्च । स्वात्मानुभूतेः स्वरसस्य पानं, सदा प्रयत्नो निजराज्यहेतोः ||३६|| आत्मात्मना चात्मनि चात्मने वा -, मनो हि चात्मानमपि प्रयत्नात् I विलोकनं चिन्तनबोधनं च, पंचेंद्रियादेः प्रविहाय मार्गम् ॥३७॥ उत्तर: – हे वत्स ! सुन, अब मैं सम्यग्दर्शनके चिन्ह कहता है । देव, शास्त्र, गुरुमं श्रद्धा और भक्ति रखना, संसार और भोगोंसे विरक्त रहना, समस्त जीवोंकी दया पालन करना, समस्त पदार्थोंको अपने अपने लक्षणों से अच्छी तरह समझकर परपदार्थों का त्याग कर देना वा परपदार्थोंसे विरक्त रहना और अपने आत्मतत्त्वमें लीन रहना, अपनी आत्मानुभूतिका और अपने आत्मानंदका सदा पान करते रहना, तथा अपने आत्माका स्वराज्य प्राप्त करनेके लिये अर्थात् स्वतंत्र सिद्ध अवस्था प्राप्त करने के लिये
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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