SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ 8 ] ग्राह्योस्ति धर्मः सहितो दयाभि- । देवोपि चाष्टादशदोषमुक्तः ॥ रत्नैस्त्रिभिः सौख्यमयैश्च युक्तों ॥ वंद्यो गुरुः स्वात्मरसेन तृप्तः ॥५॥ मोक्षस्य मार्गोपि जिनोक्त एव । ग्राह्यो हि चिन्त्यः सुखशान्तिदाता । सापेक्षसिद्धं हि जिनोक्तमेव । शास्त्रं प्रमाणं निजबोधदं च ॥६॥ उत्तरः—जो धर्म दयासे सुशोभित है वही धर्म ग्रहण करने योग्य है, जो देव अठारह दोषोंसे रहित है बही देव पूजा करने योग्य है ! जो गुरु सुखमय रत्नत्रय से सुशोभित है तथा अपने आत्मसुख वा आत्मरससे संतुष्ट है ही गुरु वंदना करने योग्य है । जो मोक्षमार्ग भगवान जिनेंद्र देवका कहा हुआ है और सुख शांति देनेवाला है वही मोक्षमार्ग ग्रहण करने योग्य है और जो शास्त्र अपेक्षाकृत अनेकांत वादसे सुशोभित है भगवान जिनेंद्र देवका कहा हुआ है और आत्मज्ञानको प्रदान करनेवाला है शास्त्र प्रमाण है तथा पठन पाठन करने योग्य है ॥५॥६॥ निपुणास्सन्ति लोकेऽस्मिन् । के नरा भो गुरो वद ॥
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy