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________________ [२] जो भगवान वीरनाथ स्वामी अपने आत्माके स्वतंत्र राज्यको करनेवाले हैं मोक्षसुखको भोगनेवाले हैं मोक्षको देनेवाले हैं संसारके कारणोंको हरण करनेवाले हैं और भव्यरूपी कमलोंको प्रफुल्लित करनेके लिए सूर्यके समान हैं ऐसे भगवान बद्धमान स्वामीको उनके सुख प्राप्त करनेक लिए मैं नमस्कार करता हूं ॥१॥ वंदित्वा श्रीजिनान् सिद्धान् । सूरीन् साधूंश्च पाउकान् ॥ वक्ष्ये बोधामृतं सारं। भव्यानां बोधहेतवे ॥२॥ मैं अरहंत सिद्ध आचार्य उपाध्याय और साधुआको नमस्कार करके भव्यजीवोंको सम्यग्ज्ञान प्राप्त करनेके लिए बोधामृतसार नामका ग्रंथ कहता हूं ॥२॥ देवश्च कीदृशस्त्याज्यः । धर्मों धर्मगुरुस्तथा ॥ शास्त्रं च पंडितः कीदृक् । त्याज्यः शास्त्री च कीदृशः॥ प्रश्न: कैसा देव त्याग करने योग्य है ? धर्म और धर्मगुरु भी कैसा त्याग करने योग्य है ? कैसा शास्त्र त्याग करने योग्य है ? कैसा पंडित त्याग करने योग्य है ? और कैसा शास्त्री त्याग करने योग्य है ? ॥
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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