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________________ [२२१] प्रमादवर्द्धकं ज्ञेयं विस्मरणं ह्यनादरः। अतिचारा इमे त्याज्याः श्रावकैर्धर्मतत्परैः ।४९९ विना देखे और बिना कोमल पीछी वस्त्र आदिसे शोधे शाख वा पूजाके उपकरणोंको ग्रहण करना वा स्थापन करना; विना देखे शोधे मलमूत्र कफ आदिको चाहे जहां छोड देना, सोने बैठनेकी चटाई आदिको प्रमाद पूर्वक बिना देखे शोथे रखना, प्रमादको बढानेवाला विस्मरण करना, अर्थात् उपवास वा उस दिनके कर्तव्यको भूल जाना तथा उपवास वा पर्वके दिनका अनादर करना ये पांच प्रोषधोपवास नतके अतिचार हैं। धर्ममें तत्पर रहनेवाले श्रावकोंको इनका त्याग अवश्य कर देना चाहिये ४९७॥४९९।। कषायविषयादीनां नाशार्थं मोहवैरिणः । वस्त्रान्नपानभार्यायाः गंधमाल्यादिवस्तुनः ॥५०० प्रतिदिनं प्रमाणं च कार्य वाहनगीतयोः। ... स्वानन्दस्वादकैर्भव्यैः स्वरसरसिकैस्तथा ॥ ५०१ जो श्रावक अपने आत्मजन्य आनंदका स्वाद लेतें रहते हैं, और आत्मजन्य आनंद रस के रसिक हैं उनको अपने कषाय और विषयोंका नाश करनेके लिए तथा मोहरूपी शत्रुको नाश करनेके लिए तथा भोजन, पान,
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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