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________________ [२१२] चोरीका प्रयोग बताना, चोरी के पदार्थ अपने घरमें रखना या लेलेना, राज्यके विरुद्ध कार्य करना, अधिक मूल्यके पदार्थोंमें कम मूल्यके पदार्थ मिलाकर बेचना और तौलने वा नापने के साधनोंको छोटे बड़े रखना ये पांच अचौर्यव्रतके अतिचार हैं। ये अतिचार संसारको बढाने वाले हैं इसलिये अपनी आत्मामें और अन्य जीवों में शांति चाहनेवाले भव्य जीवोंको अपना अचौर्यन्नत पूर्ण करनेके लिये इन अतिचारोंका सर्वथा त्याग कर देना चाहिये ॥ ४६८ ॥ ४६९ ॥ मनसा वपुषा बाचा परस्त्री यत्र वय॑ते । चतुर्थं तद्वतं ज्ञेयं ब्रह्माणुव्रतसंज्ञकम् ॥ ४७० मैथुनं तु महत्पापं बहुजीवविघातकं । तत्त्याज्यं दूरतो भव्यैश्चिदानन्देषु तन्मयैः ॥७१ जहांपर मन वचन कायसे परस्त्रीका त्याग किया जाता है उसको ब्रह्मचर्याणुव्रत नामका चौथा व्रत कहते हैं। मैथुनसेवन करना महापाप है और अनेक जीवोंकी हिंसा करनेवाला है। अत एव आत्मासे उत्पन्न हुए चिदानंदमें तल्लीन रहनेवाले भव्य जीवोंको इस मैथुन सेवन करनेका दूरसे ही त्याग कर देना चाहिये ॥४७०० ॥४७॥
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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