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________________ इस संसारमें मिथ्यावचन अत्यंत निंद्य कहलाते हैं, ये मिथ्यावचन अपने आत्माका घात करनेवाले हैं और अन्य जीवोंका घात करनेवाले हैं, क्लेश और वैर बढाने वाली क्रियाओंको करनेवाले हैं, अत्यंत भ्रांति और भय को उत्पन्न करनेवाले हैं। ऐसे मिथ्यावचनोंका त्याग कर जहांपर यथार्थ, शांति उत्पन्न करनेवाले, मिष्ट, वैरक्लेशको नाश करनेवाले और अपेक्षासहित वचन बोले जाते हैं उसको सत्यव्रत कहते हैं यह दूसरा व्रत है ।।४२९-४३०॥ अदत्तं पतितं त्यकं ग्रामे मार्गे वनादिके। स्थापितं विस्मृतं गुप्तं स्वरसास्वादकैजनैः॥ ४३१ परद्रव्यं स्वकीयं वा यदि चत्संशयास्पदम्। न ग्राह्यं श्रावकैर्नित्यं तदचौर्यव्रतं भुवि ॥४३२॥ ___जो दूसरेका द्रव्य किसी गांवमें, मार्ग वा वन पर्वत पर गिर गया है, वा कोई छोड गया है वा कोई रख गया है, वा भूलगया है वा छिपा गया है ऐसे परद्रव्यको विना दिये अपने आत्मजन्य आनंदरसका पान करनेवाले भव्य श्रावकों को कभी नहीं लेना चाहिये। यदि कोई द्रव्य अपना ही हो परंतु यह मेरा है वा नहीं इसप्रकारका जिसमें संदेह उत्पन्न हो जाय ऐसा द्रव्यभी विना दिया हुआ श्रावकोंको ग्रहण नहीं करना चाहिये । ऐसे इस बतको इस संसारमें अचौर्यव्रत कहते हैं ॥४३१-४३२॥
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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