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________________ [१७४ ] पूजामदो न कार्यों हि ज्ञात्वेति भववर्द्धकः । सरसे रसिकैर्भव्यैर्जिनाज्ञाप्रतिपालकैः ॥ ३६० ॥ जो मनुष्य आत्मज्ञानसे रहित हैं वे ही पुरुष संसारको बढानेवाला पूजा प्रतिष्ठा का अभिमान करते हैं । जो सज्जन है और आत्मजन्य आनंद से परिपुष्ट हैं वे कभी पूजा प्रतिष्ठाका अभिमान नहीं करते । क्योंकि वे आमाके स्वरूपको जानते हैं । वे समझते हैं कि इस संसार में पूजा प्रतिष्ठा पुण्योदय से प्राप्त होती है । अतएव इस शुभरूप पूजा प्रतिष्ठाको पाकर धर्मकार्य करना चाहिये अथवा परोपकार करना चाहिये । यही समझकर भगवान जिनेन्द्रदेवकी आज्ञाको प्रतिपालन करनेवाले रसिक और सरस भव्य जीवोंको संसारको बढानेवाला पूजा प्रतिष्ठाका अभिमान कभी नहीं करना चाहिये || ५८–६० ॥ भवत्युच्च कुले जन्म पुण्यात्स्वमोक्षसाधके । नीचे कुले ध्रुवं पापादहत्पूजादिरोधके ॥ ३६१ || प्राप्तोऽस्म्यनन्तवार को कुयोनिं मदोषतः । कार्यः कुलमदो नैव ज्ञात्वेति भवभीरुभिः ॥ ३६२ इस संसार में पुण्यकर्म के उदयसे स्वर्ग मोक्षको सिद्ध करने योग्य उच्च कुलमें जन्म होता है तथा पापकर्मके उदयसे जिसमें भगवान अरहंत देवकी पूजा वा पात्रदान
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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