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________________ मात करनेके लिये सदाकाल इस तपश्चरणका पालन करते रहना चाहिये ॥ ३१४ ॥ ३१५ ॥ पूताय संघाय चतुर्विधाय, सदा जिनाज्ञाप्रतिपालकाय । संसारमोहादिविनाशकाय, चतुर्गार्गनिरोधकाय ॥३१६ ॥ भध्याय संकल्पविकल्पहजे, रत्नत्रयाणां परिपालकाय । चतुर्विधं क्लेशहरं सुदान, दातव्यमेवं शिवसौख्यहेतोः ॥३१७॥ मुनि, अर्जिका, श्रावक, श्राविका यह चारो प्रकारका संघ अत्यंत पवित्र है, सदाकाल भगवान जिनेन्द्रदेवकी आज्ञाका पालन करनेवाला है, संसार और मोहादि विकारोंको नष्ट करनेवाला है, चारों गतियोंके मार्गको रोकनेवाला है समस्त संकल्प विकल्पोंको हरण करनेवाला है, रत्नत्रयको पालन करनेवाला है और भव्य है अर्थात मोक्ष प्राप्त करनेवाला है। ऐसे चारों प्रकारके संघको मोक्षसुख प्राश करनेके लिये समस्त क्लेशोंको दूर करनवाला चारों प्रकारका दान अवश्य देना चाहिये ॥३१६ ॥ ३१७॥
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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