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________________ संसारही शिवसौख्यदात्री, भव्यैः सदा सा परिपालनीया ॥२७०॥ सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र और सम्यक् तपश्चरण स्वर्गमोक्ष देनेवाले हैं तथा मोक्षके साधक हैं,. और इन चारीको धारण करनेवाले मनुष्य अपने आत्माके आश्रित है तथा आत्मजन्य आनंदरसके आश्रित है । इन सबकी सदा प्रशंसा करते रहना, इनके प्रति नम्रता धारण करना, पवित्र घिनयरूपी संपत्ति कहलाती है। यह विनय संसारको हरण करनेवाली है और मोक्षसुखको देनेवाली है अतएव भव्य जीवोंको इस विनयका पालन सदा करते रहना चाहिये ।। २६९ ॥ २७० " मनोवचःकायकृतादिभेदै, स्त्यक्त्वा जवारकोपचतुष्टयादि । तथातिचारं व्रतनाशकं च, त्यक्त्वा भयादि ममकारबुद्धिम् ॥२७१ व्रतेष्वहिंसादिषु कामदेषु, शीलेषु तत्प्रापकवर्द्धकेषु । प्रवर्तते यत्र निजाश्रयेण, शुद्धिबतादेः सुखदास्ति सैव ॥२७२॥
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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