SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [१३२] भावनीयोपवासेहि भावना का गुरो ! वद ? प्रश्नः - - हे गुरो ! उपवासके दिन कौनसी भावनाका चिंतन करना चाहिए ! यदोपवासा विमला भवेयु, स्तदा तदा षोडश भावनास्ताः । स्वर्मोक्षदाय भवरोगहर्यः, स्वराज्यहेतोर्हृदि भावनीयाः ॥ २६६ ॥ उत्तर:- जिस दिन निर्मल उपवास किया हो उस दिन भव्य जीवोंको अपना मोक्षरूप स्वराज्य प्राप्त करनेके लिये स्वर्गमोक्षको देनेवाली और संसाररूपी रोगको हरण करनेवाली सोलह कारण भावनाओंका चिंतन करना चाहिये || २६६ ॥ समस्तदोषाद्रहिता विशुद्धिः श्रद्धानरूपस्य सुदर्शनस्य । स्वस्वादतः स्वात्मविलोकनाद्वा, निजात्मबोधाच्च जिनानुरागात् ॥ २६७ स्वराज्यदात्री परराज्यहर्त्री, षट्खंडराज्यस्य सुदायिकापि ।
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy