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[६] बेलगुल में आचार्य शांतिसागर महाराजसे क्षुल्लक दीक्षा ली । उस समय आपका शुभनाम क्षुल्लक पार्श्वकीर्ति रखागया। ध्यान, अध्ययनादि कार्योमें अपने चित्तको लगाते हुए अपने चारित्र में आपने वृद्धि की व आचार्यचरणमें ही रहने लगे। __चार वर्षबाद आचार्यपादका चातुर्मास कुंभोज [बाहुबलि पहाड ] में हुआ। उस समय आचार्य महाराजने क्षुल्लकजीके चारित्रकी निर्मलता देखकर उन्हे ऐल्लक जो कि श्रावकपदमें उत्तम स्थान है, उससे दीक्षित किया। ___. बाहुबलि पहाडपरं एक खास बात यह हुई कि संघभक्तशिरोमणि सेठ पूनमचंद घासीलालजी आचार्यबंदनाके लिये आये,
और महाराजके चरणोंमें प्रार्थना की कि मैं सम्मेदशिखरजी के लिये संघ निकलना चाहता हूं। आप अपने संबसहित पधारकर हमें सेवा करनेका अवसर दें। आचार्य महाराजने संघभक्तशिरोमणिजीकी विनंतिको प्रसादपूर्ण दृष्टि से सम्मति दी। शुभमुहूर्त में संघने तीर्थराजकी वंदनाके लिये प्रस्थान किया । ऐल्लक पार्श्वकीर्तिने भी संघके साथ श्री तीर्थराजकी वंदनाके लिये विहार किया। सम्मेद शिखरपर संबके पहुंचनेके बाद वहांपर विराट उत्सव हुआ । महासभा व शास्त्री परिषत् के अधिवेशन हुए। यह उत्सव अभूतपूर्व था । स्थावर तीर्थों के साथ, जंगम तीर्थों का वहाँपर एकत्रा संगम हुआ था। ___संबने अनेक स्थानोंमें धर्मवर्षा करते हुए कटनीके चातुर्मास को व्यतीत किया। बादमें दूसरे वर्ष संघका पदार्पण चातुर्मासके