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________________ किं पुण परमेसरसिद्ध-चेइयाऽऽयरियवायगाऽऽईसु। भत्ती न होज्ज संसार-कंदनिक्कंदणसमत्था ॥ ७५७३॥ विज्जा वि ताण भत्तीए, सिद्धिमुवयाइ होइ फलदा य। किं पुण निव्वुइविज्जा, सिज्झिहिइ अभत्तिमंतस्स ॥७५७४॥ तेसिं आराहणनायगाण न करेज्ज जो नरो भत्ति । विहलेइ संजमं सो, ऊसरमहिववियसालि व ॥ ७६७५ ॥ बीएण विणा सस्सं, इच्छइ सो वासमऽब्भएण विणा । आराहणमीहइ जो, आराहगभत्तिविरहेण ॥ ७५७६॥ विहिववियस्स वि सस्सस्स, जह य निप्फावगं भवइ वासं। तह आराहगभत्ती, तवदंसणनाणचरणाणं ॥ ७५७७॥ एक्कक्कगोयरा वि हु, अरिहाऽऽइसु सुहपरंपरं जणइ । भत्ती उ कीरमाणा, कणगरहनिवो इहं नायं ॥७५७८॥ तहाहिसुंदरपइकयरक्खा, सुदीहरच्छा सुवच्छकलिया य । जा महिल व्व विरायइ, तीसे मिहिलाए नयरीए ॥ ७५७९॥ आसी कणगरहनिवो, जस्स रविस्स व पयावपसरेण । हयमऽरिकुलमऽसिरीयं, संकुइयं कुमुयसंडं व ॥७५८०॥ पणइजणजणियतोसं, अवरोप्परदूरवज्जियपओसं । तस्स य नीइपहाणं, रज्जसुहं भुंजमाणस्स ॥ ७५८१॥ एगम्मि अवसरे रयण-रुइरसिंहासणे निसण्णस्स। दूरोणामियसिरसा, विण्णत्तं संधिपालेण ॥७५८२॥ देव! महऽच्छरियमिमं, जं जिप्पइ दिणयरो वि तिमिरेण । केसरिकिसोरकेसर-सडा वि तोडिज्जइ मिगेण ॥७५८३॥ चिरकालपेसियं तुम्ह, संतियं तित्तियं पि चउरंगं । सेण्णं भज्जइ उत्तर-दिसिनाहमहिंदसीहेण ॥ ७५८४॥ किर तप्पउत्तिविणिउत्त-गूढपुरिसेहि सिग्घमाऽऽगंतुं । इण्हेिं चिय मह कहिओ, जहट्ठिओ समरवुत्तंतो ॥७५८५ ॥ तत्थ य जो तुम्ह पसाय-ठाणमाऽऽसि कलिंगनरनाहो । सो पडिवक्खेण समं, पडिवण्णो भेयमऽविलज्जो ॥७५८६॥ कुरुदेसाऽहिवई वि हु, तुह सेणाऽहिवपओसदोसेण । तव्वेलमऽवक्कंतो, रणंऽगणाओ अदक्खिण्णो ॥ ७५८७॥ अण्णे य कालकुंजर-सिरिसेहरसंकराऽऽइसामंता। ओसरिया समराओ, दट्टण विसंहयं सेण्णं ॥ ७५८८॥ एवं च मत्तकरिकर-चूरिज्जंतप्पहाणरहनिवहं । रहनिवहचूरणुत्तट्ठ-तुरयहम्मतनरनियरं ॥७५८९॥ नरनियरपडणदुग्गम-मग्गाऽऽउलसंचरंतवरसुहडं। वरसुहडपरोप्परभिडण-वाउलिज्ज तसेण्णजणं ॥७५९०॥ सेण्णजणमुक्कपोक्कार-बोलनासंतकायरनरोहं । हयजोहं जमगेहं, तुह सेण्णं पावियं रिउणा ॥७५९१ ॥ एवं सोच्चा भालयल-घडियविगरालभिउडिणा रण्णा । ताडाविया गुरुरवा, पयाणयाऽऽवेइया भेरी ॥७५९२॥ अह मेहसंघनिग्घोस-निब्भरेणं वेण लहु तीए । मुणियपयाणपओयण-मुवट्ठियं चाउरंगबलं ॥७५९३॥ ताहे तेणाऽणुगओ, कणगरहमहीवई दढं कुविओ। अविलंबियप्पयाणेहि, सत्तुणो भूमिमऽणुपत्तो ॥७५९४ ॥ अह तं आगयमुवलक्खिऊण, उव्वूढगाढरहसेण। पडिरिउणा पारद्धो, सुमहतो समरसरभो। ॥७५९५ ॥ अह मुक्कचक्कनारायवग्ग, उत्थरिय सुहड तेइण उदग्ग । कंकणमणिकंतिकयाऽवरोह, नं कुवियकयंतह दिट्ठिछोहा। ७५९६ ॥ मणपवणवेगतुरयाण थट्ट, रिउसेण्णिण सह जुज्झिण पयट्ट। हयदंड सहहिं पुंडरीयजाल, भुजेवि चत्त नं जमिण थाल ॥७५९७॥ पडिवक्खखग्गनिल्लुणियकंठ, रणकम्मणतोसियतियसवंठ। णियसामिकज्जपरिचत्तदेह, कयकिच्च नाइ नच्चिय सुजोह ॥ ७५९८॥ रुहिरद्दमुंडमंडियधरित्ति, रत्तुप्पलेहिं नं रइय भित्ति । दोहंडियकुंजर भूमिवडिय, नं रेहहि अंजणकूड खुडिय ॥७५९९ ।। इय एवंविहसंगरि बहुजणखयकरि, वढ्तइ मिहिलाऽहिवेण। नियकुंजरु चोयाविउ रणपहे ठाविउ, रिउसवडम्मुह दुद्धरिण एत्थंतरम्मि मंतीहिं, जंपियं देव ! विरमह रणाओ। मा पूरह सत्तूणं मणोरहे, नियह नियसत्ति ॥ ७६०१॥ वामदासत्तो एसो हि उत्तरदिसा-नराऽहिवो समरकम्मपरिहत्थो। तियसकयपाडिहेरो, पयंडपक्खो महासत्तो ॥७६०२॥ एयं गूढचरेहिं, णिवेइयं अम्ह संपयं चेव । ता न खमं खणमेत्तं पि, अच्छिउं एत्थ थाणम्मि ॥७६०३ ॥ अजहाबलमाऽऽरंभो य, देव! मूलं वयंति मच्चुस्स । ता सव्वपयारेहिं वि, अप्प च्चिय रक्खियव्वो त्ति ॥७६०४ ॥ अविदलियबलो इण्डिं पि, जइ तुमं देव ! विरमसि रणाओ। ता अकलियमज्झो निय-पुरि पि पावेसि निविग्धं ॥७६०५ ॥ इहरा विहिवसविहडिय-विजयस्स परेहिं भग्गपसरस्स। असहायस्स य एत्तो, पलायणं पि हुन तुह सुलहं ॥७६०६॥ इय मंतिवयणगाढो-वरोहओ निब्भओ विकणगरहो। ओसरिओ समराओ, फुडमऽवसरवेइणो गरुया ॥७६०७॥ ૨૧૪
SR No.022285
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh
Publication Year2009
Total Pages378
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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