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परिशिष्टम्
[२] विवेकमञ्जरीमूलगाथानामकाराद्यनुक्रमः ॥
गा./पृ.क्र.
कथा अंजणासुंदरी चेव अंते जो संथारपव्वज्जं अइदुल्लहो य धम्मायरिओ अड्डाइज्जादीवा अट्ठारससीलंगसहस्स अन्नाणेण कुसंगेण य अन्नो न कुणइ अहियं अरहंत सिद्धचेईय अरहंता मम सरणं अरहंता लोगुत्तमा असुइसमवायजाय अह दुक्खियाई तह अहिंसालक्खणो धम्मो अहह ! मह पाव आमयकारि विसायं इअ चउवीसं तिहुयण इय सुणिऊण पसत्थं इयमाइ सलहणिज्जा
गा./पृ.क्र. कथा ५७-३४१ | इह जीवाण विवेगो ९६-६१० | उब्भडवेसा वेसा सा १२४-६२४ | एएहिं मुक्कलेहि
२०-११ / एगिदिया य बेइंदिया य
२१-११ / एगो बंधइ कम्म १२३-६२२ | एयं चेव कुटुंब १०९-६१६ एयाइं जो निरंभइ ६२-५९० कत्थ वि कयं कुतित्थं १०-८ | कह आयं कह चलियं
९-८ कारवियाई कयाई ११६-६१८ | कालो अणाइ जीवो १११-६१७ | केवलनाणिपमुहा ६७-५९२ | खंडियमोहपगारं ३८-११६ / खंदगसीसेहिं तहा १३६-६३१ खणभंगुरं सरीरं
१३-९ | खामेमि सव्वजीवे १४१-६३३ / गुणगारवं जिणाणं ५९-५८८ | घणकम्मपासबद्धो
३३-९१ ११८-६१९
७३-६०० १०८-६१५ १३२-६२७ ११९-६१९
८९-६०७ ११५-६१८ ८८-६०६ ७२-५९८
१४-९ ४८-२०४ ३६-११२ ११४-६१७ ८०-६०४ ६०-५८८ १०१-६१३