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________________ ૭૫ मिथ्यात्वमां उत्कृष्ट अंतर १३२ सागरोपमनुं होय हवे पल्योपमनु स्वरूप कहे छे २२९. बादरसूक्ष्मा उद्धाराऽद्धाक्षेत्रपल्योपमा योजनवृत्तपल्यसप्ताष्टकृत्वो ऽसङ्ख्यांशवालाग्रोद्धारे समयवर्ष - शतस्पृष्टाऽस्पृष्टखप्रदेशैः । पल्योपमना त्रण भेद - उद्धार, अद्धा अने क्षेत्र. ए त्रणना सूक्ष्म अने बादर एप छ भेद होय. चार गाउ लांबो पहोलो अने ऊंडो गोल पालो युगलियाना माथाना वालना एक स्वडना सात वार आठ आठ खंड करीने भरीए. तेमांथी समये समये एकेक खंड काढतां पालो खाली थाय त्यारे एक बादर उद्धार पल्योपम थाय. (आ कहेवा मात्र छे पनुं प्रयोजन नथी) हवे ते बालना खंडने सो सो वर्षे काढतां ज्यारे खाली थाय त्यारे बादर अद्धा पल्योपम थाय. अने ते वालना खंडने स्पृष्ट जे आकाशप्रदेश ते समये समये एकेको अपहरतां स्पृष्ट प्रदेशने अपहरे त्यारे बादरक्षेत्र पल्योपम थाय. आ त्रण बादरपल्योपमनुं प्रयोजन नथी. हवे ते वालना खंडने असंख्यातखंड करीने भरीए अने तेमांथी समये समये एकेक खंड काढतां ज्यारे खाली थाय त्यारे सूक्ष्म उद्धार पल्योपम थाय. अने सो सो वर्षे काढतां ज्यारे खाली थाय त्यारे सूक्ष्म अद्धा पल्योपम थाय अने ते पालाने वालना खंड फरस्था
SR No.022252
Book TitleKarmarth Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1973
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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