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फरी कदी कर्मनो बंध करतो नथी (१०) उपरोक्त बन्ने विषयोने बहु समज अने सूक्ष्मताथी समजवानो प्रयास करवामां आवे त्यारे आ बन्नेनी यथार्थता समजाय छ भने ते बाद चोकसपणे आपणने लागे के जैनो पोताना तीर्थ करने सर्वज्ञ ने सर्वदशी तरीके ओलखावे छे ते सत्य छे.
कर्मसाहित्य : कर्मने अंगे श्रीभगवतीसूत्रमा ठेर ठेर मलता प्रश्नो, कम्मपपडी, चंद्रमहत्तरनो छछो कर्मग्रंथ अने आ० देवेन्द्रसूरिए रचेल पांच कर्मग्रन्थो तथा ते तमामनी वृत्ति, दश पूर्वधर उमास्वाति वाचकवर्यना तत्त्वार्थ सूत्रनो आठमो अध्याय तथा प्रस्तुत कर्मार्थ सूत्र विगेरे विशाल प्रमाणमां साहित्य आगम अने आगमेतर ग्रंथोमा जोवा जाणवा मले छे आ विशाल साहित्यमां भगवतीना प्रश्नो, तत्त्वार्थ नो आठमो अध्याय अने आ प्रस्तुत कृति ते सूत्रात्मक छे बाकी लगभग पद्यात्मक साहित्य छे.
विशिष्टता : आ कृतिनी विशेषता ए छे के भगवतीमांनां प्रश्नो सूत्रात्मक जरूर छे परन्तु प्राकृतभाषा निबद्ध छे स्वतंत्र कृति नथी तेमज तत्त्वार्थनो आठमो अध्याय ते दश अध्यायनो एक भाग छे एटले ते पण स्वतंत्र कृति नथी आम वीरप्रभुना निर्वाणना २४९९ वर्षना प्राप्त थता साहित्यमा अने जोवा जाणवा मलता इतिहासना प्रकाशमा प्रथमवार आ कृति आवी रही छे जे संस्कृतभाषा निबद्ध अने सूत्रात्मक छे अने तेनु नाम कर्मार्थपत्र छे.
परिचय : सूत्र विभागमा वहें चायेल आ कृतिमा पांच कर्मग्रंथने संक्षेपथी समाववानो प्रयास करवामां आवेल होवाथी कर्मग्रंथनु संक्षिप्तरूप अगर संक्षिप्तकरण शब्दनो प्रयोग अयुक्त नहि गणाय.