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________________ ૫૪ रनसंस्थान, उपघात सिवाय अगुरुलघु आदि लात-अगुरुलघु, पराघात, उच्छवास, आतपनाम, उद्योतनाम, तीर्थ करनाम अने निर्माणनाम, तिर्यंचायुष्य, वर्ण आदि चार, पंचेंद्रियजाति अने शुभविहायोगति ए ४२ पुण्य प्रकृतिओ छे. बाकीनी ७८ अने अशुभवर्णादि ४ एम ८२ पापप्रकृतिमओ छे. हवे अपरावर्तमान प्रकृतिने कहे छे१५८. उच्छ्वासपराघातजिननामध्रुवबन्धनवकचतुदृष्टिज्ञाना ___ वरणविघ्नभयकुत्सामिथ्यात्वान्यपरावर्ताः । जे बीजी प्रकृतिनो बंध अथवा उदय निवारीने पोतानो बंध तथा उदय देखाडे ते परावर्तमान अने जे परनो बंध तथा उदय वार्या विना ज पोतानो बंध-उदर देखाडे ते अपरावर्तमान. तेमां अपरावर्तमान २९ प्रकृतिओ छे. ते आ प्रमाणे-उच्छ्वासनाम,पराघातनाम, जिन नाम, नामध्रुव धनवकवर्णचतुष्क, तैजसनाम, कार्मणनाम, अगुरुलघुनाम, निर्माण नाम अने उपघातनाम; दर्शनावरणीय ४, ज्ञानावरणीय ५, अंतराय ५, भयमोहनीय, दुगंछामोहनीय अने मिथ्यात्व ए २९ प्रकृतिओ अपरावर्तमान होय छे. बाकीनी प्रकृतिओ परावर्तमान जाणवी.
SR No.022252
Book TitleKarmarth Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1973
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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