SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૫૧ हवे ध्रुवबंध प्रकृति | | है (ध्रुवबन्धः ) १५२. आवरणचतुर्दशकमिथ्यात्वकषायभयकुत्सावर्णचतुकागुरुलघुतैजस कार्मणनिर्माणोपघातान्तरायाणां ध्रुवं बन्धः । पोतानो हेतु होय त्यारे जे प्रकृति अवश्य बंधाय ते ध्रुवबंधी अने जे अबश्य न बांधाय ते अंध्रुवबंधी. तेमां ध्रुवबंधी ४७ प्रकृतिओ छे. ते आ प्रमाणे आवरणचतुदर्शक - ज्ञानावरणीय ५, दर्शनावरणीय प, मिथ्यात्वमोहनीय, कषाय १६, भयमोहनीय, दुर्गामोहनीय, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु तैजस, कार्मण, निर्माण, उपघात अने अंतराय ५ ए ४० प्रकृतिओनो ध्रुवबंध जाणवो बाकीनी प्रकृतिओ अध्रुवबंधी जाणवी. हवे धुवोदयी प्रकृति कहे छे१५३. ज्ञानचतुष्ट्यावरणमिथ्यात्व निर्माणस्थिरास्थिरशुभाशुभतैजस कार्मणागुरुलघुवर्णचतुष्कान्तरायाणामुदयः । पोताना उदयव्युच्छेदकाल सुधी जे प्रकृतिनो सतत उदय होय ते ध्रुवोदयी, अने जे प्रकृतिनो उदयव्युच्छेद पाम्यो होय छतां द्रव्य-क्षेत्र आदि भावने पामी फरी उदयमां आवे ते अधुवोदयी जाणवी. तेमां ध्रुवोदयी सत्तावीस ते आ प्रमाणेज्ञानावरणीय ५, दर्शनावरणीय ४, मिथ्यात्व निर्माण, स्थिर,
SR No.022252
Book TitleKarmarth Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1973
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy