SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पर्याप्ता संझिने विषे बार उपयोग होय छे । ४०. पर्याप्तचतुरिन्द्रियाऽसझिन्यज्ञानदर्शनद्वयम् । ___ पर्याप्ता चरिंद्रिय अने पर्याप्ता असंशि पंचेंद्रियमां बे अज्ञान अने बे दर्शन एम चार उपयोग होय छे । ४१. दशस्वचक्षुष्कम् । पर्याप्त अने अपर्याप्ता सूक्ष्म एकेंद्रिय, बादर पकेंद्रिय, बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, अपर्याप्त चरिंद्रिय अने असंज्ञिपंचेंद्रिय ए दसने विषे चक्षुदर्शन विना एटले अवक्षुदर्शन, मति प्रज्ञान अने श्रुतअज्ञान ए त्रण उपयोग होय छे ।। ४२. अमनश्चक्षुःकेवलज्ञान-दर्शनान्यपर्याप्ते सज्ञिनि । संज्ञि अपर्याप्ताने विषे मनःपर्यायज्ञान, चक्षुदर्शन, केवलज्ञान अने केवल दर्शन ए चार विना बाकीना आठ उपयोग होय छे। । उपयोगाधिकार समाप्त । हवे लेश्याना भेद कहे छे४३. कृष्ण-नील-कापोत-तेजः पद्म-शुक्ला लेश्याः । कषायोदयरंजित योगपरिणामने लेश्या कहे छे. तेना छ मेद छेकृष्ण, नील, कापोत, तेजो, पन अने शुक्ल । हवे जीवस्थानोमा लेश्या कहे छे
SR No.022252
Book TitleKarmarth Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1973
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy