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पण शासनमाथी फेंकाइ गया तेमनी उज्ज्वल कारकीर्दीनो चंद्र झंखवाइ गयो नवीनमतनी प्ररूपणाथी शासनना एक आंतरिकशत्रमा वधारो थयो. ईर्थ्यांना विषम चक्करे ज्ञानी अने प्रतिभावंत आचार्य ने पण अज्ञानना घेरा अंधकारमा धकेली दीधा. तेनो आछो ख्याल पण तेमनी नवीनमतनी प्ररूपणा थी स्पष्ट समजाय छे.
प्ररूपणा:-तेओनी मुख्य प्ररूपणा नीचे मुजब छे१. साधु प्रतिष्ठा (अंजनशलाका) न करावी शके, २ पाक्षिक प्रतिक्रमण चतुर्दशी ने बदले पूनमे करवु. ३ पांचमा आरामा छ मासी ( तप ? )न होय अने ४ लघुदीक्षा बाद छ महिना पहेलां उपस्थापना (वडी दीक्षा) न अपाय, विगेरे.
गच्छः-आ गच्छनी मुख्य प्ररूपणा पूनमे पक्खी करवानी होवाथी तेमने स्थापेल नविनमतनु नाम 'पूर्णिमागच्छ' पड्य छे. आ गच्छना आ० भावरत्नसूरिए सं० १८०० मां अंबडरास नव वाड सज्झाय विगेरे रच्या छे. आ उपर थी आ गच्छनु अस्तित्व संबत् १८०० सुधी होवानु तो चोकस जणाय छे (जुओ जैन परं० भा० २ पृ० ३९-४० )
ग्रंथविषयादि- दिगंबर अने चैत्यवासीओनी उत्पत्ति बाद थएल उपरोक्त जणावेल नविन प्ररूपणाओ ना प्रतिकार माटे शासनना तत्कालीन प्रयासोना एक भागरूप रचवामां आबेल आ कृतिमां 'पूर्णिमागच्छनी एक उत्सूत्रप्ररूपणा-'पक्खी पूनमे करवी' तेनु खंडन अने चतुर्दशीए पक्खी करवी' आ शासनमान्य शुद्ध प्ररूपणानी सिद्धि महानिशीथ, बृहत्कल्प, निशीथसूत्र विगेरे अनेक आगमिक ग्रंथोमा आधारे करवामां आवेल छे. प्रस्तुतकृति प्राकृतभाषामां रचाएल छे.' ७० गाथात्मक आ कृतिनी शरुआतमां 'पङ-अावश्यक' ननिदर्शन छे, एनु अपरनाम 'पक्खिअसत्तरी' छे
रचना:--जो के मूलकृतिनो रचना समय मूलकार जणावता नथी, परन्तु संवत् ११४९ पर्छ नी रचना छे, ए तो चोकस जणाय छे
'थोडामां घणु" एम आ कृति गाथासंख्यानी दृष्टिए नानी कही शकाय तेम छे. तेम छतों आमां गुंथाएल जे सित्तर गाथाओ छे ते गाथाओ सामान्य नहिं परंतु आगमोनी विस्तृत पंक्तिओना हादने बहु संक्षेपमां सुंदररीते रजु करे छे. अने एटले आ कृति विद्वानोना मनमा