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________________ ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमः आसन्नोपकारि श्री वर्धमानस्वामिने नमः । सकलागमरहस्यवेदि परमज्योतिर्विद् गीत्तार्थमूर्धन्य स्वर्गत परमपूज्य गुरुदेव श्रीमद्विजय दानसूरीश्वरजी महाराजाना परमपट्टप्रभावक स्पृहणीयचारित्रधन सुबहु श्रमणगणशिल्पी विपुलकर्मसाहित्यनिर्माणैकसूत्रधार सुविशालगच्छाधिपति स्वर्गत पूज्य गुरुदेव श्रीमद् विजय प्रेमसूरीश्वरजी महाराजाना परमप्रेरक गुणमयजीवनना संक्षिप्तवर्णनरूप गुरु-गुण- अमृतवेली याने विजय प्रेमसूरीश्वरजी रास (दुहा) श्रीमति भगवति ! शारदे ! याचुं वयण विकाश । गुण गावा गुरुरायना, जेणे दीध प्रकाश ॥१॥ "प्रेम" नाम जस शुभ हतुं, प्रवचन प्रेम अमान । प्रेमपूर जस पामतां, भव्य जगत दुःख हान ॥२॥ जस प्रेमे जग पामिया, रत्नत्रयी अभिराम । तस विरहो थातां जगे, दुःख प्रसर्यु अविराम ॥३॥ जस सूरत पण अम हती, संयम प्रेरण दाय । जीवन अगणित गुण भर्यु, अमथी केम गवाय ॥४॥ पण आधार अब ओ विना, अमने दीसे न कोय । तब गुणगण तस उर धरी, गुण लहीशुं अमे सोय ॥५॥ ७४
SR No.022249
Book TitleDravyapraman Prakaranam Evam Kshetrasparshana Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagacchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year2010
Total Pages104
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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