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________________ पंच संयत्तविवरण = 0=0=0=0= जहा पुलाए, सेसा जहा नियंठे । सामाइयसंजयस्स णं भंते! देवलोगेसु उववज्जमाणस्स केवतियं कालं ठिती प० ? गोयमा ! जहन्नेणं दो पलिओमाई उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई, एवं छेदोचट्ठावणिएवि, परिहारविसुद्वियस्स पुच्छा, गोयमा ! जहन्नेणं दो पलिओवमाई उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमाइं, सेसाणं जहा नियंठस्स १३ ॥ ( सूत्रं ७९० ) =0=0=0=0 सामाइयसंजयस्स णं भंते ! केवइया संजमट्ठाणा पन्नत्ता ? गोयमा ! असंखेज्जा संजमहाणा प०, एवं जाव परिहारविस्रुद्धियस्स, सुहुमसंपरायसंजयस्स पुच्छा, गोयमा ! संखेज्जा अंतोमुहुत्तिया संजमट्टाणा प०, अहक्खायसंजयस्स पुच्छा, गोयमा ! एगे अजहन्नमणुक्कोसए संजमट्ठाणे । एएसि णं भंते! सामाइयछेदोवट्ठावणियपरिहारविसुद्धियसुहुम संपराग अहक्खायसंजयाणं संजमट्ठाणाणं कयरे कयरे जाव विसे साहिया वा? सव्वत्थोवे अहक्खायसंजमस्स एगे अजहन्नमणुक्कोसए संजमट्ठाणे, सुहुमसंपरागसंजयस्स अंतोमुहुत्तिया संजमट्ठाणा असंखेज्जगुणा, परिहार===0[ ५५ ]0=0=0=0=0=0« =0=0===t
SR No.022245
Book TitlePanch Sanyat Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji
PublisherKunvarji Anandji
Publication Year1937
Total Pages86
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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