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आराहणापणगं (४) दंतवियणाए कत्थइ, कत्थइ निहओ मि कण्णसूलेणं। अच्छीदुक्खेण पुणो, सिरवियणाए गंओ निहणं ||१४६|| कत्थइ रुहिरपवाहेण नवर णित्थामयं गयं जीयं । कत्थइ पुरीसवाहो ण संठिओ जाव वोलीणो ॥१४७|| कत्थइ लूयाए हओ, कत्थइ फोडीए कह वि निहओ हं। कत्थइ मारीए पुणो, कत्थइ पडिया चडिक्का मे ||१४८|| कत्थइ फोडेहि मओ, कत्थइ सूलेण णवर पोट्टस्स। कत्थइ वजेण हओ, कत्थ वि पडिओ मि टंकस्स
||१४९|| कत्थइ सूलारूढो, कत्थइ उबंधिऊण वहिओ हं । कत्थइ कारिमसेवा, कत्थइ मे गुग्गुलं धरियं ॥१५०|| कत्थइ जलणपविट्ठो, कत्थइ सलिलम्मि आगया मच्चू । कत्थइ गएण मलिओ, कत्थइ सीहेण गिलिओ हं
||१५१||
कत्थइ तण्हाए. मओ, कत्थइ सुक्को बुभुक्खवियणाए । कत्थइ सायवखध्दो, कत्थइ सप्पेण डक्को हं ॥१५२||