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आराहणापणर्ग (५) (गा. ३३३-३५. सिद्धिसरूवं) सा सिवपुरि त्ति भणिया, अयला सा चेव स च्चियापावा | अपवग्गो निव्वाणं अयलो मोक्खो य सो होइ ॥३३३||
खेमंकरी य सुहया होइ अणाउट्टि सिद्धठाणं च | सेयं दीवं तं चिय, तं चिय हो बंभलोय ति ||३३४||
तत्थ न जरा, न मच्चू, न वाहिणो, णेय सव्वदुक्खाई। अच्चंतसासयं चिय भुजंति अणोवमं सोक्खं ॥३३५||
॥ पअम्याराधना समाप्तेति |