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अथ दिनचर्या नामाख्यं द्वितीयोल्लासः॥2॥
अथ स्नानार्थे वर्जिततिथ्यादीनां
द्वितीया वर्जिता स्नाने दशमी चाष्टमी तथा। . त्रयोदशीचतुर्दश्यो षष्ठी पञ्जदशी कुहूः॥1॥
(इस द्वितीय उल्लास में भी दिनचर्या का वर्णन है। इसमें ज्योतिष की मान्यताओं के अनुसार कर्तव्यों का वर्णन किया गया हैं) सामान्यतया द्वितीया, दशमी, अष्टमी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, षष्ठी, पूर्णिमा और अमावस्या- ये तिथियाँ स्नान में वर्जित रखनी चाहिए। वारानुसारेणस्नानफलं
अदित्यादिषु वारेषु तापः कान्तिप॑तिर्धनम्। दारिद्रयं दुर्भगत्वं च कामाप्ति स्नानतः कमात्॥2॥
रविवार, सोम, मङ्गल, बुध, गुरु, शुक्र और शनिवार- इन सातों वारों में स्नान करें तो क्रमश: ताप, कान्ति, मृत्यु, द्रव्य, दारिद्रय, दुर्भाग्य और मनैच्छित वस्तु की प्राप्ति होती है। तात्कालिकस्नान निषेधं -
नग्नाप्रोषितायातः सुचैलो भुक्तभूषितः। नैव स्नायादनुव्रज्य बन्धून्कृत्वा च मङ्गलम्॥3॥
निर्वस्त्र, रोगी और यात्रा से आया हुआ, सुन्दर वस्त्राभरण धारण किया हुआ, भोजन किया हुआ, अपने स्नेहीं कुटुम्बी जनों को पहँचा कर आया हुआ और कोई भी माङ्गलिक कार्य हुआ हो तो उसको तत्काल स्नान नहीं करना चाहिए।
* नारदसंहिता में आया है- अभ्यक्तो भानुवारे यः स नर: क्लेशवान्भवेत् ॥ ऋक्षेशे कान्तिभाग्भौमे
व्याधिसौभाग्यमिन्दुजे जीवे नैस्वं सिते हानिर्मन्दे सर्वसमृद्धयः ॥ (नारदसंहिता 5, 9-10 एवं नारदपुराण पूर्व. 56, 157-158)