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________________ 46 : विवेकविलास यह अपने पूर्वजन्म का पुण्योदय होता है जो दिखाई देता है और वैसे ही नए पुण्य का उपार्जन भी होता है । नित्यं देवगुरुस्थाने गन्तव्यं पूर्णपाणिभिः । विधेयस्तत्र चापूर्वज्ञानाभ्यासो विवेकिभिः ॥ 124 ॥ अपने हाथ में फल-फूल, चावल आदि कोई भी भेंट योग्य वस्तु लेकर नित्य धर्मस्थल पर जाना चाहिए। यदि वहाँ से कोई ज्ञानलब्धि नहीं भी हो तो उसको ज्ञानियों से प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए । आजन्म गुरुदेवानामर्जनं युज्यते सताम् । रोगादिभिः पुर्ननस्याद्यदि तन्नैव दोषकृत् ॥ 125 ॥ आजीवन सद्पुरुषों को देवपूजा और गुरुभक्ति सदैव ही करना उचित है तथापि यदि व्याधि-रोगादि के चलते ऐसा नहीं हो सके तो कुछ दोष नहीं जानना चाहिए । कुप्रवृतिं त्रिधा त्यक्त्वा दत्त्वा तिस्रः प्रदक्षिणाः । देवस्यार्चां त्रिधा कृत्वां तध्यायेत्सिद्धिदं सुधीः ॥ 126 ॥ यह कर्तव्य है कि मन, वचन, काया से समस्त कुप्रवृत्तियों का त्याग करें । देवालय पहुँचकर प्रतिमा की तीन प्रदक्षिणा करें और मनसा वाचा - काया पूजन करें । इसी प्रकार देवार्चा या प्रतिमा-स्वरूप का ध्यान करना चाहिए । मिथ्यादृष्टिभिरग्राह्यो विश्वतिशयभासुरः । निः संसारविकारश्च यो देवः स सतां मतः ॥ 127॥ जो लोग मिथ्या दृष्टि रखते हैं, उनको उस देवसत्ता का ज्ञान नहीं होता जबकि वह सत्ता सर्व अतिशयों से विराजित है और सांसारिक विकारों से सर्वथा रहित है। अथ प्रतिमाधिकारः उपविष्टस्य देवस्योर्ध्वस्य वा प्रतिमा भवेत् । द्विविधापि युवावस्था पर्यङ्कासनगादिमा ॥ 128 ॥ (अब देवार्चा-प्रतिमा के लक्षणों के विषय में कहा जा रहा है) भगवान् की आसनस्थ या स्थानक दोनों ही प्रकार की प्रतिमाएँ यौवनावस्था वाली होनी चाहिए । यदि आसनस्थ प्रतिमा हो तो उसको पर्यङ्कासन रखना चाहिए।* * देवी-देवताओं की प्रतिमाओं के लक्षण प्रधानतः अगस्त्यकृत सकलाधिकार, वराहमिहिर कृत बृहत्संहिता, मयमतं, मानसार, ज्ञानप्रकाशदीपार्णव, चतुर्वग्गचिन्तामणि, आचारदिनकर, मत्स्यपुराण, विष्णुधर्मोत्तरपुराण, सूत्रधारमण्डन कृत देवतामूर्तिप्रकरणं, रूपमण्डनं, सूत्रधार नाथा कृत वास्तुमञ्जरी आदि में आए हैं।
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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