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________________ अथ ध्यानस्वरूपनिरूपणं नामाख्यं एकादशोल्लासः : 263 उसका परित्याग करना कठिन ही है। जातिपाखण्डयोर्येषां विकल्पाः सन्ति चेतसि। वार्ताभिस्तैः श्रुतं तत्त्वं न पुनः परमार्थतः॥6॥ जिसके चित्त में जाति और पाखण्ड के विचार बसते हों, उन्होंने तत्त्व सुना हो तो सम्भवतः वार्ता के रूप में ही सुना होगा, परमार्थ के प्रयोजन से नहीं। तावत्तत्त्वं कुतो यावद्भेदः स्वपरयोर्भवेत्। नगरारण्ययोर्भेदे कथमेकत्ववासना॥7॥ जब तक स्व-पर भेद है, तब तक तत्त्व की बात कहाँ से होगी? जहाँ तक नगर और ग्राम में भेद दीखे, वहाँ तक ऐक्य बुद्धि कैसे कही जाएगी। धर्मः पिता क्षमा माता कृपा भार्या गुणाः सुताः। कुटुम्बं सुधियां सत्यमेतदन्ये तु विभ्रमाः॥8॥ सत्पुरुषों के लिए तो धर्म ही पिता, क्षमा ही माता, दया ही भार्या और सद्गुण ही पुत्र हैं। सत्पुरुषों का यही कुटुम्ब है। शेष समस्त बातें भ्रम मात्र हैं। योगीवासस्य देहस्वरूपाह - . पादबन्धदृढं स्थूल कटीभागं भुजार्गलम्। - धातुभित्ति नवद्वारं देहं गेहं सुयोगिनः॥9॥ पाँव रूप सुदृढ़ पाये वाला, कटि रूप मध्य भाग वाला, भुजा रूप अर्गल वाला, सात धातु रूप भित्ति वाला और नव द्वार वाला- ऐसा शरीर ही सिद्धात्मा योगी का आवासगृह है। समाधिस्थानलक्षणं कान्तं प्रशान्तमेकान्तं पवित्रं विपुलं समम्। समाधिस्थानमन्वेष्यं सद्भिः साम्यस्य साधकम्॥10॥ मनोहर, शान्त, एकान्तप्रिय, पवित्र, विशाल और सीधा- ऐसा सम-साधक स्थान पुरुषों को समाधि साधना के लिए चयन करना चाहिए। ------- ----------.. . • लिङ्गपुराण में आया है कि अग्नि के समीप में, जल में, शुष्क पत्तों के ढेर में, जन्तुओं से व्याप्त स्थान में, श्मशान, जीर्ण पशुशालाओं या गोष्ठ और चौराहे में, ध्वनि प्रदूषित स्थान में, भय से युक्त स्थान में, चैत्य और वल्मीक के सञ्चित स्थान में, अशुभ स्थान में, दुष्ट लोगों से घिरे हुए तथा मच्छर आदि से भरे हुए स्थान में कभी योग का अभ्यास नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार जहाँ अभ्यासी के देह में किसी भी प्रकार की बाधा हो, उस दशा में तथा किसी कारण से दुर्मन हो तो भी अभ्यास नहीं करे। (अभ्यास करने की दृष्टि से उपयुक्त स्थान निम्न हैं) किसी अच्छे गोपनीय स्थान, शुभ, रमणीक स्थान, पर्वत की गुफा, सुगुप्त शिव क्षेत्र, शिवोद्यान, वन, गृह, सुशुभ देश, एकान्त जहाँ कि कोई भी मनुष्य न हो, जीव जन्तुओं से रहित स्थान, अत्यन्त निर्मल स्थल, भली-भाँति लिपा-पुता
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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