SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 245
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अथ जन्मचर्या नाम अष्टमोल्लासः : 243 मनुष्य कपट से निस्पृहता दिखाए तब भी वह उसे फलदायक है। द्रोहप्रयोजने नैव भाव्यमत्युत्सुकैनरैः। कदाचिदपि कर्तव्यः सुपात्रेषु न मत्सरः॥406॥ भले पुरुषों को ऐसे कार्य की सिद्धि के लिए कभी उत्साह नहीं दिखाना चाहिए जो कि मत्सर (ईर्ष्या) से सिद्ध होता हो। फिर, जो सुपात्र हो, उसके साथ किसी भी काल में मत्सर नहीं करना चाहिए अर्थात् प्रतिस्पर्धा भी हो तो स्वस्थ होनी चाहिए। पारस्परिक, जातीयैक्यनिर्देशं - - स्वजातिकष्टं नोपेक्ष्यं तदैक्यं कार्यमादरात्। मानिनां मानहानिः स्यात्तदोषादयशोऽपि च॥407॥ सम्ममान प्राप्त पुरुष को अपनी जाति के कष्ट की ओर से कभी आँख नहीं दनी चाहिए अपितु हृदय से जातिगत एकता का प्रयास करना चाहिए क्योंकि यदि वह ऐसा नहीं करता है तो उसका सम्मान-खण्डन और अपयश होता है। नश्यन्ति ज्ञातयः प्रायः कलहादितरेतरम्। मिलिता एव वर्धन्ते कमलिन्य इवाम्भसि॥408॥ . जातियाँ एक-दूसरे से कलह करने से प्रायः नष्ट हो जाती हैं और यदि वे परस्पर मिलकर रहें तो जल में जिस प्रकार कमलिनी की अभिवृद्धि होती हैं, वैसे ही अभिवृद्धि को प्राप्त होती हैं। अन्य कर्तव्यमाह - दारिद्र्योपद्रुतं मित्रं नरं साधर्मिकं सुधीः । ज्येष्ठं जातिगुणैर्जाभिमनपत्यां च पूजयेत्॥409॥ . समझदार मनुष्य को दरिद्रावस्था में आए हुए अपने मित्र व साधर्मी का, अपनी अपेक्षा या जाति से अथवा गुणों से श्रेष्ठ मनुष्य का और अपनी निपूती बहिन का सम्मान, सहयोग करना चाहिए। सारमिथ्यान्यवस्तूनां विक्रयाय क्रयाय च। कुलानुचितकार्याय नोद्यच्छेद्गौरवप्रियः॥410॥ जिसे अपना गौरव प्रिय लगता हो, ऐसे व्यक्ति को कभी अन्य व्यक्ति की भली-बुरी वस्तुओं के क्रय-विक्रय के लिए और अपने कुल के अनुचित कार्य के लिए तत्पर नहीं होना चाहिए। अकरणीय चेष्टादीनां -
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy