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________________ अन्यदप्याह ― अथ जन्मचर्या नाम अष्टमोल्लासः : 241 ध्रुवम् । कालकृत्यं न मोक्तव्यमतिखिन्नैपि नाप्नोति पुरुषार्थानां फलं क्लेशजितः पुमान् ॥ 394 ॥ यदि कभी किसी कारणवश खिन्नता हो भी जाए तो जिस समय जो काम करने का हो उसे कदापि नहीं त्यागना चाहिए, क्योंकि क्लेश के वश हुआ मनुष्य उद्यम का फल कभी प्राप्त नहीं कर पाता। उच्चैर्मनोरथाः कार्याः सर्वदैव मनस्विना । विधिस्तदनुमानेन सम्पदे यतते यतः ॥ 395 ॥ विवेकी को हमेशा उच्चाभिलाषा, महत्वाकांक्षा रखनी चाहिए क्योंकि दैवबल, भाग्य जिसकी जैसी अभिलाषा हो, उसे वैसा ही फल देने में सहायता करता है । कुर्यानन कर्कशं कर्म क्षमाशलिनि सज्जने । प्रादुर्भवति सप्तार्चिर्मथिताच्चन्दनादपि ॥ 396 ॥ सज्जन पुरुषों को कभी क्षमाशील के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार नहीं करना चाहिए क्योंकि सुगन्धित चन्दन का मन्थन किया जाए तो उससे भी ज्वाला निकलती है । दृष्ट्वा चन्दनतां यातान् शाखोटादीनपि द्रुमान् । मलायाद्रौ ततः कार्या महद्भिः सह सङ्गतिः ॥ 397 ॥ महान चरित्र वालों को मलयागिरि पर के शाक और अन्य वृक्षों को भी चन्दन तुल्य देखकर विशाल हृदय वाले पुरुषों की सङ्गत करनी चाहिए । शुभोपदेशदातारो वयोवृद्धा बहुश्रुताः । कुशला धर्मशास्त्रेषु पर्युपास्या मुहुर्मुहुः ॥ 398 ॥ गन्धयुक्ति:, 19. भूषणयोजनम्, 20. ऐन्द्रजालयोगाः, 21. कोचुमारयोगाः, 22. हस्तलाघवम्, 23. विचित्रशाकयूषभक्ष्यविकारक्रियापानकरसरागासवयोजनम्, 24. सूचीवानकर्माणि, 25. सूत्रक्रीड़ा, 26. वीणाडमरुकवाद्यानि 27. प्रहेलिका, 28. प्रतिमाला, 29. दुर्वाचकयोगाः, 30. पुस्तकवाचनम्, 31. नाटकाग्व्यायिकादर्शनम्, 32. काव्यसमस्यापूरणम्, 33. पट्टिकावेत्रवानविकल्पा, 34. तर्ककर्माणि, 35. तक्षणम्, 36. वास्तुविद्या, 37. रुप्यरत्नपरीक्षा, 38. भ्रातुवादः, 39. मणिरागाकरज्ञानम्, 40. वृक्षायुर्वेदयोगाः, 41. मेषकुक्कुटलावकयुद्धविधिः, 42. शुकसारिका प्रलापनम्, 43. उत्सादन-संवाहनकेशमर्दन - कौशलम् 44. अक्षरमुष्टिका कथनम्, 45. म्लेच्छितविकल्पाः, 46. देशभाषाविज्ञानम्, 47. पुष्पशकटिका, 48. निमित्तज्ञानम्, 49. यन्त्रमातृका, 50. धारणमातृकाः, 51. सम्पाठ्यम्, 52. मानसी, 53. काव्यक्रिया, 54. अभिधानकोष:, 55. छन्दोज्ञानम्, 56. क्रियाकल्प:, 57. छलितकयोगाः, 58. वस्त्रगोपनानि, 59. द्यूतविशेषा:, 60. आकर्षकक्रीड़ा, 61. बालक्रीडनकानि, 62. वैनयिकीनां विद्यानां ज्ञानम्, 63. वैजयिकीनां विद्यानां ज्ञानम्, 64. व्यायामिकीनां विद्यानां ज्ञानम् - चेति । (कामसूत्र 1, 3, 16; जयमङ्गला टीका 1, 3, 15 )
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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