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________________ 232 : विवेकविलास मूत्र में और रक्त में नहीं देखना चाहिए। ऐसा करने से आयुष्य कम होता है। अथ निरीक्षणप्रक्रमाह - ऋजु शुक्लं प्रसन्नस्य रौद्रं तिर्यक् च कोपिनः। सविकासं सपुण्यस्याधोमुखं पापिनः पुनः॥ 337॥ शून्यं व्यग्रमनस्कस्य वलितं चानुरागिणः। मध्यस्थं वीतरागस्य सरलं सजनस्य च ॥ 338॥ असम्मुखं विलक्षस्य सविकारं तु कामिनः। भ्रूभङ्गवक्रीालोमा॑न्तं मत्तस्य सर्वतः ॥ 339॥ जलाविलं च दीनस्य चञ्चलं तस्करस्य च। अलक्षितार्थ निद्रालो वित्रस्यं भीरुकस्य च ॥ 340॥ बहवो वीक्षणस्यैवं भेदाः कति तु दर्शिताः। (अब दृष्टि विचार कहा जा रहा हैं) प्रसन्न व्यक्ति की दृष्टि सदा सरल और उज्ज्वल होती है; क्रोधी मनुष्य की भयोत्पादक और वक्र; पुण्यशाली मनुष्य की प्रफुल्लित; पापी पुरुष की नीची; व्यग्रचित्त वाले की शून्य, रोगी की पीछे घूमने वाली; मध्यस्थ की मध्यप्रदेश में रहने वाली, सज्जन की सरल, विलखे मनुष्य की आड़ी-तिरछी, कामी पुरुष की विकारमय, अनदेखी करने वाले की भ्रमर के मोड़ से टेढी, मदोन्मत्त पुरुष की अश्रु से मलीन, चोर-तस्कर की चञ्चल, निद्रालु-मूर्च्छित और भयभीत की दृष्टि कम्पित होती है। इस प्रकार दृष्टि के बहुत से भेद हैं। इनमें से कतिपय यहाँ कहे गए हैं। अथ नेत्रस्वरूपम् - दृक्स्वरूपमथो वक्ष्ये स्वभावोपाधिसम्भवन्। 341॥ रक्तत्वं धवलत्वं च श्यामत्वमतिनिर्मलम्। पर्यन्तपार्श्वतारासु दृशोः शस्यं यथाक्रमम्।। 342॥ अब स्वभावात् व सकारण उत्पन्न नेत्रों का स्वरूप कहता हूँ। आँखों के किनारे लाल और निर्मल हो तो अच्छे, कीकी के दोनों पर्दे श्वेत और निर्मल हों तो अच्छे और कीकी काली और निर्मल हो तो अच्छी होती है।" * मनुस्मृति में आया है- नेक्षेतोद्यन्तमादित्यं नास्तं यन्तं कदाचन । नोपसृष्टं न वारिस्थं न मध्यं नभसो गतम्॥ (मनु. 4, 37) इसी प्रकार विष्णुस्मृति में आया है- नादित्यमुद्यन्तमीक्षेत । नास्तं यान्तम्। न वाससा तिरोहितम्। न चादर्श जलमध्यगतम्। न मध्याह्ने। (विष्णु. 71) और- अस्तकाले रविं चन्द्रं न पश्येद् व्याधिकारणम्। (ब्रह्मवैवर्त. श्रीकृष्णजन्म. 75, 24) **यह वर्णन सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार है, अङ्गविद्या विषयक ग्रन्थों में विस्तार से मिलता है।
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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