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________________ 222 : विवेकविलास (अब सांख्य मत के बारे में कहा जा रहा है) कतिपय सांख्य मतावलम्बी शिव को और कतिपय विष्णु को देव मानते हैं किन्तु ये दोनों ही (पच्चीस) तत्त्व की गणनादि एक-सी करते हैं। साङ्ख्यानां स्युर्गुणाः सत्त्वं रजस्तम इति त्रयः। साम्यावस्था भवत्येषां त्रयाणां प्रकृतिः पुनः॥ 277॥ सांख्यमत के अनुसार सत्त्व, रज और तम ये तीन गुण हैं । इन तीनों गुणों की साम्यावस्था का ही नाम प्रकृतितत्त्व है। .. प्रकृत्यात्मसंयोगात्सृष्टिर्जायते । अतः सृष्टिक्रममेवाह - प्रकृतेः स्यान्महत्तत्त्वमहङ्कारस्ततोऽपि च। पञ्च बुद्धिन्द्रियाणि स्युश्चक्षुरादीनि पञ्च च ॥ 279॥ कर्मेन्द्रियाणि वाक्पाणि चरणोपस्थपायवः । मनश्च पञ्चतन्मात्राः शब्दो रूपं रसस्तथा। 280॥ स्पर्शो गन्धोऽपि तेभ्यः स्यात्पृथ्व्याद्यं भूतपञ्चकम्। इयं प्रकृतिरेतस्याः परस्तु पुरुषो मतः॥ 281॥ प्रकृति से महत्तत्त्व, महत्तत्त्व से अहङ्कार, अहङ्कार से पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ, शब्द, रूप, रस, स्पर्श और गन्ध- ये पाँच तन्मात्र और मन होता है। पाँच तन्मात्र से क्रमशः पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश- ये पाँच महाभूत होते हैं। इन समस्त 24 तत्त्वरूप प्रकृति से बिल्कुल पृथक् पुरुष (25वाँ) हैं। पञ्चविंशतितत्त्वीयं नित्यं साङ्ख्यमते जगत्।। प्रमाणत्रितयं चात्र प्रत्यक्षमनुमागमः। 282॥ इन सब 25 तत्त्वों से से ही जगत् हुआ ऐसा सांख्यमत है। प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम मिलाकर इसमें तीन प्रकार के प्रमाणों की मान्यता है। यदैव जायते भेदः प्रकृतेः पुरुषस्य च। मुक्तिरुक्ता तदा साङ्ख्यैः ख्यातिः सैव च भण्यते ॥ 283॥ * षड्दर्शनसमुच्चय में कहा गया है- साङ्ख्या निरीश्वराः केचित्केचिदीश्वरदेवताः । सर्वेषामपि तेषां स्यात्तत्वानां पञ्चविंशति ॥ (षड्दर्शन. 34) **षड्दर्शनसमुच्चय में कहा गया है- ततः सञ्जायते बुद्धिर्महानिति यकोच्यते। अहङ्कारस्ततोऽपि स्यात्तस्मात्षोडशको गणः ॥ स्पर्शनं रसनं घ्राणं चक्षुः श्रोत्रं च पञ्चमम्। पञ्च बुद्धीन्द्रियाण्यत्र तथा कर्मेन्द्रियाणि च। पायूपस्थवचः पाणिदाख्यानि मनस्तथा। अन्यानि पञ्च रूपादितन्मात्राणीति षोडश॥ रूपोत्तेजो रसादापो गन्धाद् भूमिः स्वरान्नभः। स्पर्शाद्वायुस्तथैवं च पञ्चभ्यो भूतपञ्चकम् ॥ एवं चतुर्विंशतितत्त्वरूपं निवेदितं सांख्यमते प्रधानम्। अन्यस्त्वकर्ता विगुणश्च भोक्ता तत्त्वं पुमानन्नित्यचिदभ्युपेतः ।। (षड्दर्शन.37-41)
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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