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________________ अथ जन्मचर्या नाम अष्टमोल्लासः : 207 अथ दंशस्थानविचारः इष्टिकाचितिवल्मीकाद्रिद्रुकूपसरित्तटे । वृक्षे कुओ श्मशाने च जीर्णशालगृहान्तरे॥ 193॥ पाषाणसञ्चये दिव्यदेवतायतनादिके। स्थानेष्वेतेषु यो दष्टो यमस्तस्मिन्हढोद्यमः ॥ 194॥ ईंटों से बने घर में, वाँबी पर, पर्वत पर, झाड़ के नीचे, कूप या नदी के किनारे, तृण-लता और वृक्षों से ढके हुए प्रदेश में, श्मशान, जीर्ण भवन में, पत्थरों के ढेर में, देवस्थान आदि पर जिसे साँप काट खाता है, वह अवश्य मृत्यु को प्राप्त होता है। अथ सर्पजातिविचारः विषभेदावबुद्ध्यर्थं ज्ञेयो नागोदयः पुरा। अज्ञातविषभेदः सन्निर्विषीकुरुते कथम्॥195॥ (अब सर्यों की जाति के बारे में कहा जा रहा है") विष के प्रकार को समझने के लिए प्रथमतः नाग का उदय जानना चाहिए क्योंकि विष के प्रकार को जाने बिना विष किस तरह उतारा जा सकता है। रविवारे द्विजोऽनन्तो नागः पद्मशिराः सितः। वायवीयविषों यामार्धमात्रमुदयी भवेत्॥ 196॥ वायुमय विष (विषाक्त फूंकार) को धारण करने वाला, विप्र कुल का 'अनन्त' संज्ञक नाग रविवार को शरीर पर पौने चार घड़ी तक विष निकालता है। उसके सिर पर पद्म होता है और वह शरीर से श्वेत वर्ण का होता है। वासुकिः सोमवारे तु क्षत्रियः शुभविग्रहः। नीलोत्पलाङ्क आग्नेय गरलोऽभ्युदयं व्रजेत्॥ 197॥ --------------------------- गरुडपुराण में भी कहा गया है कि श्मशान, बाँबी, पर्वत, कुआं और वृक्ष के कोटर में स्थित सर्प के काटने पर यदि दाँत लगे स्थान पर तीन प्रच्छन्न रेखाएँ बन जाती हैं तो प्राणी जीवित नहीं रह पाता है- चितावल्मीकशैलादौ कूपे च विवरे तरोः । दंशे रेखात्रयं यस्य प्रच्छन्नं स न जीवति ।। (गरुड. पूर्व. 19, 2) अग्निपुराण में भी आया है-देवालयेशून्यगृहे वल्मीकोद्यानकोटरे । रथ्यासन्धौ श्मशाने च नद्यां च सिन्धुसङ्गमे द्वीपे चतुष्पथे सौधे गृहेब्जे पर्वताग्रतः ॥ बिलद्वारे जीर्णकूपे जीर्णवेश्मनि कुड्यके। शिग्रुश्रूष्मातकाक्षेषु जम्बूदुम्बर वेणुषु ॥ वटे च जीर्णप्राकारे खास्यहत्कुजक्षत्रुणि। (अग्नि. 294, 21-24) **शास्त्रों में नौ नागों का उल्लेख आया है-- अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्। शङ्खपालं धार्तराष्ट्र तक्षकं कालियं तथा ॥ एतानि नवनामानि नागानां च महात्मनाम् । सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात:काले विशेषतः ॥ तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत् ॥
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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