________________
अथ जन्मचर्या नाम अष्टमोल्लास: : 205 त्रुट्यन्ति मूर्धजा यस्य दृग्मध्ये धवलो लवः। कण्ठग्रहो वपुः शीतं हिक्का क्षामकपोलता। 177॥ भ्रमिर्मोहोङ्गदाहश्च शशिरव्योरवीक्षणम्। गात्राणां कम्पनं भङ्गो दृशौ रक्ते सनिद्रता ॥ 178॥ लाला विरूक्षता पाण्डुरत्वं वाक्सानुनासिका। विपरीतार्थवीक्षा च जृम्भा छर्दिः स्वरान्यता॥ 179॥ छेदे स्रावो न रक्तस्य न रेखा यदि ताडने। नाधस्तात्स्तनयोः स्पन्ददर्शनं गलकेऽपि च॥ 180॥ दशनाकारधारित्वं सुव्यक्तं कर्णपृष्ठतः। निश्वासस्य च शीतत्वं कन्धराप्यतिभङ्गरा। 181॥ शोणिते पयसि क्षिप्ते विस्तरस्तैलबिन्दुवत्। ओष्ठसम्पुटयोर्मुद्रा भेदो मेलितयोरपि॥ 182॥
(अब विष-पीड़ित व्यक्ति के लक्षण कहे जा रहे हैं) विष से पीड़ित जिस मनुष्य के बाल टूटे, आँख में सफेद बिन्दु दिखने लगे, गला अवरुद्ध हो जाए, शरीर ठण्डा पड़ जाए, हिचकी आए, गाल कुम्हला जाए, चक्कर आए, मूर्च्छित हो जाए, शरीर शुष्क हो जाए, चन्द्र और सूर्य होने पर भी न दीखे, शरीर कम्पित और टूटे, आँखे लाल हो जाए, निद्रा आए, लार झरे, नासिका सूखे, शरीर फीका पड़े, नाक में से स्वर निकले, वस्तु एक हो तो दूसरी दीखे, जम्हाई आए, वमन हो, स्वर बदल जाए, शरीर छेदन से खून न निकले, लकड़ी प्रहार पर शरीर पर चिह्न न पड़े, दोनों स्तनों के नीचे और गाल में स्फुरण का अनुभव नहीं हो, कान के पीछे दन्त के आकार प्रकट हों, निश्वास ठण्डा प्रतीत हो, गर्दन नहीं ठहरे, रक्त पानी में डालने से तेल की तरह फैल जाए, दोनों ओठ को खोले तो भी बाद में बन्द हो जाए (तो ऐसा व्यक्ति विष पीड़ित होता है)। अन्यदप्याह -
जिह्वाविलोकनं नैव न नासाग्रनिरीक्षणम्। '
आत्मीयो विषयः कश्चिदिन्द्रियाणां न गोचरः॥ 183 ॥ मुख श्वासो न नासायां विकाशो नेत्रवक्त्रयोः । चन्द्रे सूर्यभ्रमः सूर्ये चन्द्रोऽयमिति च भ्रमः ।। 184॥ कक्षायां रसनायां च श्रवणद्वितयेऽपि च। ध्वाङ्क्षपादोपमं नील यदि चोत्पद्यते स्फुटम्।। 185॥