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________________ 188 : विवेकविलास इसलिए इन पाँच स्थानों में स्तम्भादि का निवेश नहीं करना चाहिए। द्वारवेधविचारं - स्तम्भकूपडुकोणाध्वविद्धं द्वारं शुभं न हि । गृहोर्व्याद्विगुणां भूमिं त्यक्त्वा ते स्युर्न वेधकाः ॥ 93 ॥ स्तम्भ, कूप, वृक्ष, कर्ण या कोना और मार्ग यदि गृह के मध्य या गृह के द्वार मध्य में आए तो द्वारवेध कहलाता है। यह अच्छा नहीं माना जाता है किन्तु यदि घर की कुल भूमि से दुगुनी भूमि छोड़कर ये सब या इनमें से कोई एक हो तो द्वारवेध नहीं माना जाता है। वृक्षं च ध्वजच्छाया विचारं प्रथमान्त्यथामवर्जं द्वित्रि प्रहरसम्भवा । छाया वृक्षध्वजादीनां सदा दुःखप्रदायिनी ॥ 94 ॥ यदि दिन में प्रथम और अन्तिम प्रहर छोड़कर दूसरे और तीसरे प्रहर में किसी रास्ते के वृक्ष अथवा देवालय की ध्वजा की छाया भवन पर पड़ती हो तो वह सदैव दुःखद समझना चाहिए ।" वर्जनीय देवदृष्टिदीनां - * वर्जयेदर्हतः पृष्ठं दृष्टि चण्डीशसूर्ययोः । वामाङ्गे वासुदेवस्य दक्षिणं ब्रह्मणः पुनः ॥ 95 ॥ अपने भवन के द्वार के सम्मुख अर्हत या जिनदेव की पीठ, दुर्गा, महादेव और सूर्य की दृष्टि नहीं होनी चाहिए । विष्णु मन्दिर का बायाँ भाग और ब्रह्मा के मन्दिर का दाहिना भाग भी वर्जित है। मत्स्यपुराण में कहा गया है कि वेध की दूरी भवन की ऊँचाई से दुगुनी होनी चाहिए तब दोष नहीं लगता है— उच्छ्रायाद् द्विगुणां भूमिं त्यक्त्वा वेधो न जायते ॥ (मत्स्य. 255, 14 ) इन वेधों का फलाफल बृहत्संहिता में इस प्रकार दिया गया है हैं- रथ्याविद्धं द्वारं नाशाय कुमारदोषदं तरुणा । पङ्कद्वारे शोको व्ययोऽम्बुनिः स्राविणि प्रोक्तः ॥ कूपेनापस्मारो भवति विनाशश्च देवताविद्धे । स्तम्भेन स्त्रीदोषाः कुलनाशो ब्राह्मणाभिमुखे ॥ (बृहत्संहिता 53, 77-78) ** मत्स्यपुराण में वेधों के अन्य दोषों का फलाफल इस प्रकार बताया गया है- तरुणा द्वेषबाहुल्यं शोकः पङ्केन जायते । अपस्मारो भवेन्नूनं कूपवेधेन सर्वदा ॥ व्यथा प्रस्रवणेन स्यात् कीलनाग्निभयं भवेत् । विनाशो देवताविद्धे स्तम्भेन स्त्रीकृतो भवेत् ॥ गृहभर्तुर्विनाशः स्याद् गृहेण च गृहे कृते । अमेध्यावस्करैः विद्धे गृहिणी बन्धकी भवेत् ॥ ( मत्स्य. 255, 11-13 ) * राजवल्लभवास्तुशास्त्रं में कहा गया है कि भवन के पास दूध, काँटे तथा अधिक फल वाले वृक्षों को नहीं लगाना चाहिए, लेकिन चम्पा, पाटल, केल, जई तथा केतकी का रोपण करना चाहिए। जिस भवन पर दिन के दूसरे तथा तीसरे पहर में वृक्ष या मन्दिर की छाया पड़ती हो, वह हितकारी नहीं है, लेकिन पहले व चौथे प्रहर में पड़ने वाली छाया दोषरहित है। ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य और महादेव मन्दिर के सामने तथा जैन मन्दिर के पीछे भवन निर्माण नहीं करना चाहिए। जहाँ चण्डी की स्थापना हो, वहाँ आसपास भी गृह वर्जित है— वृक्षाः क्षीरसकण्टकाश्च फलिनस्त्याज्या गृहाद्दूरतः
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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