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176 : विवेकविलास योगाक्षांशकायव्ययादीनां परीक्षणं निर्देशं -
सुयोगर्दा सुतारांश स्थिरांशमधिकायकम्। अद्विादशकत्रित्रिकोणषट्काष्टकं शुभम्॥59॥
वास्तु विचार के लिए योगादि को देखना चाहिए। अतएव जहाँ योग, नक्षत्र और तारा- ये तीनों उत्तम, लग्नांश स्थिर और व्यय से आय अधिक सिद्ध होती हैं जबकि द्विादश (दूसरा-बारहवाँ) त्रि-त्रिकोण (तीन पाँच या तीन नौ) और षट्काष्टक (छह-आठ)- ये तीन बुरे योग न हो तो वह गृह शुभ जानना चाहिए। श्रीपतिमत्यानुसारेण मासफलविचारं
शोको धान्यं मृतिपशुहती द्रव्यवृद्धिविनाशो युद्धं भृत्यक्षतिरथ धनं स्त्री च वर्भयं च। .. लक्ष्मीप्राप्तिर्भवति भवनारम्भकर्तुः क्रमेण चैत्रादूचे मुनिरिति फलं वास्तुशास्त्रोपदिष्टम्॥6॥
चैत्रादि चन्द्रमास में गृह निर्माण करने पर शोक, वैशाख में धन-धान्य, ज्येष्ठ में मृत्यु, आषाढ़ में पशुहरण व नाश, श्रावण में द्रव्यवृद्धि, भाद्रपद में विनाश होता है। इसी प्रकार आश्विन में युद्ध, कार्तिक में नौकरों-भृत्यों का क्षय, मार्गशीर्ष में धनवृद्धि व पौष में स्त्री प्राप्ति, माघ में अग्निभय और फाल्गुन में भवन निर्माण से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। यह फल वास्तुशास्त्र के उपदेष्टाओं ने चैत्रादि मास के क्रम से कहा है। अथ सूत्रपातार्थे नक्षत्राणि -
पुष्यधुवमृदुस्वाति हस्तवासववारुणे। प्रथमो वेश्मनां सूत्र प्रारम्भः सद्धि रिष्यते॥61॥
पुष्य, हस्त, स्वाती, विशाखा, ज्येष्ठा, शतभिषा, रोहिणी, उत्तरा, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपदा, मृगशिरा, चित्रा, अनुराधा और रेवती- इन नक्षत्रों में से किसी भी नक्षत्र को देखकर गृहार्थ प्रथम सूत्रपात किया जाना चाहिए, ऐसा विद्वानों का मत है। तदनन्तरे आयादि परीक्षणं.. समाधिकव्ययं कर्तुः समनाम यमांशकम्।
कुमासधिष्ण्यवारं च गृहं वर्ण्य प्रयत्नतः।। 62॥
जहाँ समान आय हो अथवा आय से अधिक व्यय हो और अपने स्वामी के साथ मिलते नाम को धारण करने वाला, यमांश में आया हुआ और दुष्ट मास, दुष्ट ---------------------------- * यह श्लोक ज्योतिषरत्नमाला (17, 14) का है और परवर्ती कई ग्रन्थों में ज्यों का त्यों मिलता है।