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________________ अथ ऋतुचर्या नाम षष्ठोल्लास: : 159 शय्या- ये शीत का निवारण करने वाली कही हैं। अथ शिशिरर्तुचर्या - उत्तराशानिलाद्रूक्षं शीतमत्र प्रवर्तते। शिशिरेऽप्यखिलं कृत्यं ज्ञेयं हेमन्तवबुधैः॥29॥ और अब अन्त में, शिशिर ऋतु के सम्बन्ध में कहा जा रहा है कि इसमें उत्तर दिशा के पवन से रूक्ष सर्दी पड़ती है। इसलिए सुज्ञपुरुषों को इसमें भी हेमन्त ऋतु के ही अनुसार ही सर्व कृत्य जानने चाहिए। उल्लासोपसंहरति ऋतुगतमिति सर्वं कृत्यमेतन्मयोक्तं निखिलजनशरीरे क्षेमसिद्ध्यर्थमुच्चैः। निपुणमतिरिदं यः सेवते तस्य न स्याद् वपुषि गदसमूहः सर्वदाभ्यर्णवर्ती॥30॥ इस प्रकार से छहों ऋतुओं में आचरणीय सर्व कृत्य सकल मनुष्यों के शरीर के स्वास्थ, कुशलार्थ मैंने कहे हैं। जो मनुष्य निपुण बुद्धि से इनके अनुसार आचरण करेगा, उसके शरीरस्थ रोग-समुदाय जो कि नित्य ही मनुष्यों के पास ही रहता है, वह कभी प्रकट नहीं हो सकेगा। इति श्रीजिनदत्तसूरि विरचिते विवेकविलासे ऋतुचर्यायां षष्ठ उल्लासः॥6॥ इस प्रकार श्रीजिनदत्त सूरि कृत विवेकविलास में ऋतुचर्चा नामक छठा उल्लास पूरा हुआ।
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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