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________________ 150 : विवेकविलास सामान्यतया जन्म दिन से लेकर दो वर्ष पूरे हो, उतने समय में बालक के सम्पूर्ण दांत आते हैं और सातवें वर्ष से लगाकर दसवें वर्ष के भीतर सब दांत एक बार गिरकर पुनः नए दांत आ जाते हैं। दन्तसङ्ख्यानुसारेणफलोच्यते - राजा द्वत्रिंशता दन्तैर्भोगी स्यादेकहीनया॥ 240॥ त्रिंशता तनुवित्तोऽष्टाविंशत्या सुखितः पुमान्। एकोनत्रिंशता निःस्वो हीनैर्दन्तैरतोऽधमः ॥ 241॥ जिसके पूरे 32 दांत हों वह राजा होता है। इसी प्रकार 31 दांत वाला भोगी, 30 दांत वाला अल्प द्रव्य वाला, 28 वाला सुखी, 29 वाला दरिद्री और यदि 28 से कम दांत हो तो ऐसा व्यक्ति अधम होता है। कुन्दपुष्पोपमाः शूक्ष्णाः स्निग्धा ह्यरुणपीठिकाः। तीक्ष्णदंष्ट्रा घना दन्ता धनभोगसुखप्रदाः॥242॥ कुन्द के फूल की आभा वाले, महीन, मुलायम, लाल मसूढ़ों वाले, तीक्ष्ण दाढ़ वाले और सुदृढ़- ऐसे दांत धन, भोग और सुखप्रदाता जानने चाहिए। खरद्वीपिरदा धन्याः पापाश्चाखुरदास्तथा। द्विपक्तिविरलश्यामकरालासमदन्तकाः ॥ 243॥ गधे और सिंह के दांत की तरह मनुष्य के दांत हों तो वे श्रेष्ठ जानने चाहिए किन्तु यदि दो पंक्तियों से ऊगे हुए, छूटे-छूटे, काले, विकराल और बिखरे हुए या . असमान दांत आए हुए हों तो वे पापकारी व दुःखद होते हैं। सङ्गमोपरान्त निषिद्धकर्मादीनां - निरोधभङ्गमाधाय परिज्ञाय तदास्पदम्। विमृश्य जलमासन्नं कृत्वा द्वारनियन्त्रणम्॥ 244॥ इष्टदेवनमस्कार नष्टापमृतिभीः शुचिः। रक्षामन्त्रपवित्रायां शय्यायां पृथुताजुषि॥ 245॥ सुसंवृतपरीधानः सर्वाहारविवर्जकः। वामपार्श्वन कुर्वीत निद्रां भद्राभिलाषुकः॥246॥(त्रिभिर्विशेषकम्) कल्याण के अभिलाषी पुरुष को स्त्रीसङ्ग के बाद मल-मूत्र की शङ्का हो तो टालनी चाहिए; शङ्का न हो तो मल-मूत्र का स्थान कहाँ है, यह देख रखना चाहिए; सब आहार का त्याग करना; पास में जल रखना; द्वार बन्द करना; पवित्र होकर इष्टदेव को नमस्कार कर अपमृत्यु का भय टालना चाहिए। इसके बाद स्वयं पवित्र होकर रक्षामन्त्र से पवित्र की हुई चौड़ी शय्या के बिछोने पर अच्छी तरह ओढ़कर
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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