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128 : विवेकविलास
यदि कमर, ग्रीवा, मस्तक, उदर और कपाल के मध्यभाग और नासिका के अन्त में भ्रमर सीधा हो तो भी वह शुभ नहीं जानना चाहिए।
आवर्ता वामभागेऽपि स्त्रीणां संहारवृत्तयः। न शभास्तु शभा भालदक्षिणेऽङ्गे च दृष्टितः॥ 121॥
स्त्रियों के बायें भाग पर विपरीत भ्रमर हों तो उनको शुभ नहीं जानना चाहिए परन्तु दाहिने भाग पर और विशेष रूप से कपाल के दाहिने भाग पर सीधे भ्रमर हों तो शुभ जाने। नामानुसारेणवरणविचारं -
देवोरगनदीशैल नक्षत्राणां पतन्त्रिणाम्। श्वपाकप्रेष्यभीष्मानां सज्ञया वनिता त्यजेत्॥ 122॥
नाम के अनुसार देवता, सर्प, नदी, पर्वत, नक्षत्र, पक्षी, चण्डाल, सेवक और अन्य किसी भयङ्कर वस्तु की संज्ञा धारण करने वाली स्त्री वर्जित समझे।"
धराधान्यलतागुल्मसिंहव्याघ्रफलाभिधाम्। त्यजेन्नरी भवेदेषा स्वैराचारप्रिया यतः॥ 1230
इसी प्रकार भूमि, धान्य, लता, गुल्म (पौधा) सिंह, बाघ और किसी फल का नाम धारण करने वाली स्त्री को भी प्रयत्न से वर्जित जानना चाहिए क्योंकि, ऐसी स्त्री स्वैच्छाचारिणी होती है। अत्र लक्षणपरीक्षायाश्चावश्यकत्वमाह -
नापरीक्ष्य स्पृशेत्कन्यामविज्ञातां कदाचन। निघ्रन्ति येन योगैस्ताः कदाचिद्दक्षनिर्मितैः॥ 124॥
विवेकी पुरुष को बिना परीक्षा किए कभी अज्ञात कन्याओं का स्पर्श नहीं करना चहिए क्योंकि वे कन्याएँ दक्ष मनुष्य के किए हुए मन्त्र, औषधादि के प्रयोग से विषमय होकर स्पर्श करने वाले पुरुष का प्राणान्त कर डालती है।
महौषधप्रयोगेण कन्या विषमयी किल। . जातेति श्रूयते ज्ञेया तैरेतैः सापि लक्षणैः॥ 125॥
* जगन्मोहन में समद्र के मत से आया है- त्रिष्वावतॊ भवेद्यस्या ललाट उदरे भगे। त्रीणि
भक्षयेनारी देवरे श्वसरं पतिम॥ आवतः पृष्ठतो यस्या न सा कल्याणभागिनी। बहन सा रमते नारी
दुःखितान् कुरुते सदा ॥ (लक्षणप्रकाश पृष्ठ 184 पर उद्धृत) **भोज का मत है कि कन्या का नदी, पर्वत, पेड़, यूप, देवता और अन्तर-वाम देव, सागर, पौधे, गोत्र
से नामादि नहीं होना चाहिए। जिसने र देख लिया हो, परपुरुषरत हो, उससे विवाह नहीं करेकन्या नदीपर्वतपादपानां नाम्री तथा यूपदिवौकसां च। अन्तेरवामैरमरस्यसंज्ञा क्रमात्सरित् पादपगोत्रनामीः ।। दृष्टरजाः परपुरुषरता न विवाह्या कन्यका सद्भिः ॥ (राजमार्तण्ड 218-219)