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________________ ' अथ दीपशयनवरवधूलक्षणजातकादीनां वर्णनं नाम पञ्चमोल्लास: : 123 तर्जन्यादिनखैर्भग्गैर्जातमात्रस्य तु क्रमात्।। अर्धत्र्यंशचतुर्थांशाष्टांशाः स्युः सहजायुषः॥88॥ मनुष्य की तर्जनी, मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठा- इन चार अङ्गलियों में एक अङ्गली का जन्म से ही नख वक्र हो तो ऐसे मनुष्य क्रमशः पचास वर्ष, तैंतीस वर्ष और चार महीने, पच्चीस वर्ष और साढ़े बारह वर्ष तक जीते हैं। अङ्गुष्ठस्य नखे भग्ने धर्मतीर्थरतो नरः। कूर्मोन्नतेऽङ्गुष्ठनखे मरः स्याद्भाग्यवर्जितः ॥ 89॥ - इति वरलक्षणम्। जिस व्यक्ति का अंगूठा वक्र हो वह मनुष्य धर्म और तीर्थसेवन करता है और जिसके अंगूठे का नख कछुए की पीठ की भाँति ऊँचा हो, वह भाग्यहीन होता है। अधुना वधूलक्षणोच्यते - बन्धुलक्षणलावण्य कुलजात्याद्यलकृताम्। कन्यकां वृणुयाद्रूपवतीमव्यङ्गविग्रहाम्॥१०॥ (विवाहादि के प्रसङ्ग में यह ज्ञातव्य है कि) जो भाइयों वाली बहन हो, उत्तम लक्षणों से परिपूर्ण हो, लावण्यमय, उच्च कुल, उत्तम जाति, रूपवती और .. जिसके शरीर. के अवयव में कोई कमी नहीं हो, ऐसी कन्या से पुरुष को विवाह करना चाहिए। कन्यावयविचारं -- . - अष्टमाद्वर्षतो यावद्वर्षमेकादशं भवेत्। सतावत्कुमारिका लोके न्याय्यमुद्वाहमर्हति ॥91॥ कन्या आठवें वर्ष से ग्यारहवें वर्ष तक लोक समुदाय में कुमारी कही जाती है। इसलिए न्यायतः (इसके बाद, वर्तमान में अठारह वर्ष के बाद) वह रीत्यानुसार विवाह करने योग्य है। बाल्यावस्थाद्दशलक्षणाः पादगुल्फौ च जङ्ग्रे च जानुनी मेढ़मुष्कको। .. नाभिकट्यौ च जठरं हृदयं च स्तनान्वितम्॥92॥ जत्रुबाहू तथैवौष्ठ कन्धरे दृग्भ्रुवौ तथा। .. भालमौली दश क्षेत्राण्येतान्याबाल्यतोऽङ्गके ॥१३॥ * धाराधिप भोज का मत है कि आठ वर्ष की लड़की गौरी व दस वर्ष की होने पर कन्या कही जाती है, जब वह बारह वर्ष की होती है तब रजस्वला होती है-अष्टवर्षा भवेगौरी दशवर्षा तु कन्यका। सम्प्राप्ते द्वादशे वर्षे परतस्तु रजस्वला ॥ (राजमार्तण्ड 392)
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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